Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ द्वितीय अधिकार | १७ से सुशोभित थे । वे मूलगुणों और उत्तरगुणोंको धारण करने वाले थे । राजा महीचन्द्रको जब यह बात मालूम हुई कि नगर के बाहर मुनिराजका आगमन हुआ है, तब वह अपनी रानी और नगर निवासियोंको लेकर उनके दर्शन के लिये चला । वहां पहुंचनेपर राजाने जल चन्दन आदि आठ द्रव्योंसे मुनिराज के चरण कमलोंकी पूजा की। इसके बाद बड़ी नम्रताके साथ उन की स्तुति कर नमस्कार किया । पुनः उनसे धर्मवृद्धिका आशीर्वाद प्राप्त कर उनके समीप ही बैठ गया । उस वन में लोगों का बड़ा समुदाय देख अत्यन्त कुरूपा तीन शूद्रकी कन्यायें - जो कहीं जारही थीं, आकर बैठ गयीं। इसके बाद मुनिराजने राजा महीचन्द्र और जन समुदायके लिये भगवान जिनेन्द्रकी वाणीसे प्रकट हुआ लोक कल्याणकारक धर्मोपदेश देना आरम्भ किया। वे कहने लगे - देव, शास्त्र और गुरुकी सेवा करनेसे धर्मकी उत्पत्ति होती हैं । एकेन्द्रिय और द्वय इन्द्रिय, समस्त प्राणियोंकी रक्षा करनेसे धर्म उत्पन्न होता है । जीवोंके उपकारसे धर्म उत्पन्न होता है और धर्मके मार्गोको प्रदर्शित करने से सर्वोत्तम धर्म प्रकट होता है । मन, वचन, कायकी शुद्धता द्वारा सम्यग्दर्शनके पालन करने, व्रतोंकें धारण करने तथा मद्य मांस मधुके त्याग करनेसे धर्मकी अभिवृद्धि होती है। पांचों इन्द्रियों को वश में करने तथा अपनी शक्ति के अनुसार दान करने से धर्मकी अभिवृद्धि होती है। ऐसे अन्य भी बहुतसे उपाय हैं, जिनसे जैन धर्म की वृद्धि होती है और लोक तथा परलोकमें सांसारिक जीवोंको उत्तम सुख प्राप्त होता है । फल यह होता

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115