Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 19
________________ द्वितीय अधिकार भगवान जिनेन्द्र देवने अपने शुभ वचनोंके द्वारा संसारके दूपित मलका प्रक्षालन करते हुए कहा-श्रेणिक! तू निश्चिन्तता पूर्वक श्रवण कर। मैं पाप और पुण्य दोनोंसे प्रकट होनेवाले श्री गौतम गणधर स्वामीके पूर्व भवोंका वर्णन करता है। भरत क्षेत्रमें अनेक देशोंसे सुशोभित, अत्यन्त रमणीय अवंती नामका एक देश है। उस देशमें मुनिराजों द्वारा एकत्रित किये हुए यशके समूहकी तरह विशाल तथा ऊंचे श्वेतवर्णके जिनालय शोभित थे। वहां पथिकोंको इच्छित फूल, फल प्रदान करनेवाली वृक्ष पंक्तियां सुशोभित हो रही थीं। वहां समय पर मेघों द्वारा सींचे हुए खेत, सव प्रकारकी सम्पत्ति, फल फूलसे लदे हुए थे। उस देशमें पुष्पपुर नामका एक नगर था। वह नगर ऊंचे कोटसे घिरा हुआ, सुन्दर उद्यानोंसे सुशोभित नन्दन वनको भी लजित कर रहा था। वहांके देव-मंदिर जिनालय और ऊंचे ऊंचे राजमहल अपनी शुभ्र छटा से हंसते हुए जान पड़ते थे। वहांके अधिवासी जैन-धर्मके अनुयायी थे। वे धर्म, अर्थ, काम इन तीनों पुरुषार्थोंको सिद्ध करने वाले थे। वे दानी और बड़े यशस्वी थे। वहाँकी ललनाएं सुन्दर शीलवती, पुत्रवती, चतुर और सौभाग्यवती थीं। इसलिये वे कल्पलताओंकी तरह सुशोभित होती थीं।

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