Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 18
________________ १४ गौतम चरित्र । प्रसन्नता हुई । सत्य ही है-अमृतके घड़ेकी प्राप्तिले कौन संतुष्ट नहीं होता । अर्थात् सभी सन्तुष्ट होते हैं। पश्चात् महाराज श्रेणिक गणधरों के प्रभु स्वामी सर्वज्ञ देव भगवानको नमस्कार कर खड़े होगये और भगवान गौतम गणधरके पूर्व वृत्तान्त पूछने लगे - भगवन ! ये गौतम स्वामी कौन हैं ? किस पर्याय से यहां आकर इन्होंने जन्म धारण किया है । इन्हें किस कर्मसे ये लब्धियां प्राप्त हुई हैं। ये सब क्रमानुसार मुझे बतलाइये । आपके निर्मल वचनों से मेरा सारा सन्देह दूर हो जायगा । आपके वचन रूपी सूर्यके समक्ष मेरे संदेहरूपी अंधकारका नाश हो जाना निश्चित है । धर्मके प्रभाव से उच्चकुलकी प्राप्ति और मिष्ट वचनों की प्राप्ति होती है । उस पर सबका प्रेम होता है । वह सौभाग्यशाली होता है और उत्तम पदको प्राप्त होता है । उसे सर्वांग सुन्दर स्त्रियां प्राप्त होती हैं, और स्वर्गकी प्राप्ति होती है। उसे उत्तम वृद्धि, यश, लक्ष्मी और मोक्षतकं प्राप्त होते हैं । अतः श्रेणिकने जैन धर्म में निष्ठा कर अपनी सदबुद्धिका परिचय दिया ॥ ११४ ॥ "

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