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गौतम चरित्र ।
को देखकर देवांगनाएं भी लज्जित होती थीं। वे अपने हावभाव, विलास आदि द्वारा अपने पतिको स्वर्गीय सुखोंका उपभोग कराती थीं । नगरके महलोंकी पंक्तियां अत्यन्त ऊंची थी। उनमें सुन्दरता और सफेदी इतनी अधिक थी कि उनके समक्ष चन्द्रमाको भी थोड़ी देर के लिये लज्जित होना पड़ता था । साथ ही बाजारकी कतारें भी इतनी सुन्दरता के साथ निर्माण कराई गई थीं कि, जिन्हें देखकर मुग्ध हो जाना पड़ता था। उसकी दीवारें मणियोंसे सुशोभित थीं। वहां स्वर्ण रौप्य अन्न आदिका हर समय लेन देन होता रहता था । उस समय नगरका शासन भार महाराज श्रेणिकके हाथमें था । वे सभ्यग्दर्शन धारण करनेवाले थे । समस्त सामन्तोंके मुकुटोंसे उनके चरण-कमल सूर्यसे देदीप्यमान हो रहे थे। उनके वैभवशाली राज्यमें प्रजा सुखी थी, धर्मात्मा थी । प्रजा धर्म साधनमें सर्वदा तल्लीन रहती थी । अतएव उन्हें भय, मानसिक वेदना, शारीरिक संताप, दरिद्रता आदिका कभी शिकार नहीं बनना
पड़ता था ।
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महाराज श्रेणिक अत्यन्त रूपवान थे । वे अपनी सुन्दरतासे कामदेवको भी लज्जित कर देते थे । उनका तेज इतना प्रबल था जो सूर्यको भी जीत लेता था तथा वे याचकोंको इतना धन देते थे कि जिसे देखकर कुबेरको भी लज्जित होना पड़ता था । शायद विधिने समुद्रसे गम्भीरता छोनकर, चन्द्रमा से सुन्दरता लेकर, पर्वतसे अचलता, इन्द्रगुरु बृहस्पतिसे बुद्धि छीनकर श्रेणिकका निर्माण किया था। महाराज श्रेणिकमें