Book Title: Gautam Charitra
Author(s): Dharmchandra Mandalacharya
Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya

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Page 8
________________ गौतम चरित्र 1. योजन छः कला है । विजयार्द्ध पर्वत और गंगा, सिन्धु नामके महानदियोंके छः भाग हो गये हैं, जिन्हें छः देश कहते हैं । उन्हीं देशोंमें मगध नामका एक महादेश है। वह समस्त भूमण्डलपर तिलकके समान सुशोभित है। वहां अनेक उत्सव सम्पन्न होते रहते हैं । वह धर्मात्मा सज्जनोंका निवास स्थान है। इसके अतिरिक्त मदम्ब, कर्वट, गांव, खेट, पत्तन, नगर वाहन, द्रोण आदि सभी बातों से मगध सुशोभित है। वहां के वृक्ष ऊंचे, घनी छाया तथा फलसे युक्त होते हैं । उन्हें देख कर कल्पवृक्षका भान होता है । ग्रहांके खेत धान्यादि उत्पन्न कर समग्र प्राणियों की रक्षा करते हैं। मनुष्यों को जीवन प्रदान करनेवाली औषधियां भी प्रचुर मात्रा में, उत्पन्न होती हैं। वहां के सरोवरोंका तो कहना ही क्या, वे कवियोंकी मनोहर वाणी की भांति सुशोभित हो रहे हैं। कवियोंके वचन निर्मल और गम्भीर होते हैं, उसी प्रकार वे तालाब भी निर्मल और गंभीर ( गहरे ) हैं । कवियोंकी वाणीमें सरलता होती है अर्थात् नव रसोंसे युक्त होती है उसी प्रकार वे सरोवरभी सरस अर्थात् जलसे पूरे हैं । कवियोंके वचन पद्यबद्ध होते हैं, वे सरोवरभी पद्मबंध कमलों से सुशोभित हो रहे हैं। वहांकी पर्वतीय कंदराओं मैं किन्नर जातिके देव लोग अपनी देवांगनाओंके साथ बिहार करते हुए सदा गाया करते हैं। वहांके वन इतने रमणीय इतने सुन्दर होते हैं कि उन्हें देखकर स्वर्गके देवता भी कामके वशमें होजाते हैं और वे अपनी देवांगनाओंके साथ क्रीड़ा करने लग जाते हैं। मगध में स्थान स्थान पर ग्वालोंकी स्त्रियां गायें

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