Book Title: Gautam Charitra Author(s): Dharmchandra Mandalacharya Publisher: Jinvani Pracharak Karyalaya View full book textPage 7
________________ प्रथम अधिकार । ही हुआ करते हैं । यह परम्परा है । जिस प्रकार बसन्त कोयल को बोलनेके लिये वाध्य करता है, उसी प्रकार श्री गौतमस्वामी की भक्ति ही मुझे उनके पवित्र जीवन चरित्रको लिखनेके लिये उत्साह प्रदान करती है । मैं यह समझता हूं कि, जैसे किसी ऊंचे पर्वतपर आरोहणकी इच्छा करनेवाले लंगड़ेकी सब लोग हंसी उड़ाते हैं; वैसे ही कवियों की दृष्टिमें मैं भी हंसीका पात्र बनूंगा; क्योंकि मेरी बुद्धि स्वल्प है । कथा प्रारम्भ मध्यलोकके बीच एक लाख योजन विस्तृत जम्बूद्वीप विद्यमान है । वह जस्त्र वृक्षसे सुशोभित और लवण सागर से घिरा हुआ है। उस द्वीप मध्य में सुमेरु नामका अत्यंत रमणीय पर्वत है, जहां देवता लोग निवास करते हैं, उसी द्वीपमें स्वर्णरौकी छ पवत मालाएं हैं। इस मेरु पर्वत के पूर्व-पश्चिम की ओर बत्तीस विदेह क्षेत्र हैं, जहाँसे भव्यजीव मोक्ष प्राप्त किया करते हैं । पचतके उत्तर-दक्षिण की ओर भोगभूमियां हैं, जहांके लोग मृत्यु प्राप्तकर स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं । उन भोगभूमियोंके उत्तर-दक्षिण भागमें भारत और ऐरावत नामके दो क्षेत्र हैं, जिनके वीचमें रूपाभ विजयार्द्ध पर्वत खड़ा है एवं उत्सर्पिणी तथा अवरूपिणीके छः काल जिनमें चक्कर लगाया `करते हैं। उन क्षेत्रोंमें भरत क्षेत्रकी चौड़ाई पांच सौ छबीसPage Navigation
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