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निष्ठा का न डिगना ही उसका प्रमुख लक्ष्य होता है, क्योंकि वास्तव में यही उसकी सर्वोपरि सफलता मानी जाती है। इसीलिए इस स्तोत्र के ईहाप्टक नाम की सार्थकता है।
४-देवकाली-महिमा-देवकाली महाकाली का ही दूसरा नाम है। प्रस्तुत महिमा में महाकाली की ही प्रशस्त महिमा का वर्णन और उनकी उपासना द्वारा प्राप्त होने वाले आगमोक्त विशेष फलों का उल्लेख किया गया है । इसके अतिरिक्त, स्तुति की समाप्ति में सत्त्व, रज और तम तीनों के गुणधर्मानुसार, त्रिशक्ति के रूप में उनके अवतार का निरूपण एवं तीनों ही रूपों का आगम-संमत स्वरूप-परिणामन दिखलाया गया है। इस स्तुति की यही विशेषता है।
. . ५-चण्डिका-स्तुति-यह भगवती चण्डी देवी के आश्रम का प्राकृतिक वर्णन और उनके चण्डी स्वरूप का प्रतिपादन है। उक्त स्थान गोमती के तट पर स्थित है। इसका विशेष परिचय आगे दिया गया है।
६-महिषमर्दिनी-गीति- इसमें भगवती महिषमर्दिनी (महिषासुर नामक राक्षस का वध करने वाली कौशिकी ) के प्रादुर्भाव से लगाकर उनके महालक्ष्मी स्वरूप की परिणति तक के आगमोक्त समष्टि रूप का वर्णन किया गया है। सुप्रसिद्ध नवार्णमन्त्र की यही प्रधान देवता हैं। इसके अतिरिक्त मार्कण्डेय पुराणान्तर्गत सप्तशती (दुर्गापाठ) में वर्णित प्रथम, मध्यम और उत्तम तीनों चरित्रों की अधिष्ठात्री महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के स्वतत्र रूपों का भी क्रमशः निदर्शन है। नवार्णमंत्र के तीनों बीजों का महत्व
और उनके प्रतिपाद्य अर्थों का परिचय कराया गया है । सङ्गीतकला के प्रेमियों के लिए गान के रूप मे उक्त गीति अपना और अधिक महत्व रखती है।
७-सकलजननी-स्तव- यह भगवती त्रिपुर सुन्दरी (श्रीविद्या) के प्राकृतिक किन्तु साकार-स्वरूप का वर्णन है। इसीके साथ २ उनकी पूर्ण विकसित अवस्था और महिमा का चित्रण किया गया है। आगम ग्रन्थों में इनको शक्ति-मण्डल की प्रधान नायका और महाराज्ञी बतलाया गया है। इसीलिए इनको सकलजननी कहा जाता है । स्तोत्र-साहित्य के प्राचीन प्रमुख-स्तोत्र 'पश्चस्तवी' मे भी इनकी स्तुति सकलजननी के नाम से की गई है। ,