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पूजा पद्धति के मार्मिक ज्ञाता एवं विद्वान होते रहे हैं, और साथ ही जनता के विश्वास-भाजन रहते आये हैं।
३-देवकाली-उत्तर प्रदेश के, फैजाबाद नगर के दक्षिण, सिटी रेलवे स्टेशन से थोड़ी ही दूर पर 'देवकाली' देवी का प्रसिद्ध प्राचीन मन्दिर है। कई शताब्दियों तक यह प्रदेश अयोध्या राज्य के अन्तर्गत रहा है । किन्तु अवध (अयोध्या ) के नबाबों के समय में यह प्रदेश प्राचीन अयोध्या से अलग कर लिया गया था और मुस्लिम शासकों ने इसका स्वतंत्र नाम करण फैजावाद कर दिया था । वास्तव में फैजाबाद वनने से पूर्व का यहां का इतिहास अयोध्या के इतिहास के ही अन्तर्गत है । ईसवी सन् १७६० में अवध के नबाब शुजाउद्दौला ने फैजाबाद को अवध की राजधानी बना लिया, और इस प्रकार अठारहवीं सदी से यहां के इतिहास की दिशा बदल गई। कई वर्ष हुए हिन्दी के पुराने प्रतिष्ठित लेखक अवधवासी स्वर्गीय लाला सीताराम बी. ए. उपनाम 'भूप कवि' ने अयोध्या का जो इतिहास लिखा है, उसमें पौराणिक काल और उसके बाद होने वाले अब तक के अयोध्या संवन्धी ऐतिहासिक परिवर्तनों और कायाकल्पों का जो प्रामाणिक विवेचन किया है, वह कई दृष्टियों से महत्वपूर्ण और अध्येतव्य है । उसमे अयोध्या के प्राचीन और नवीन दोनों तरह के इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है । (देखिये-हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयाग द्वारा प्रकाशित 'अयोध्या का इतिहास')
___ उक्त देवकाली का मन्दिर लोक प्रसिद्धि के अनुसार इक्ष्वाकुवंशी किसी सुदर्शन नामक राजा का बनवाया हुआ है। यद्यपि प्रचलित 'विष्णु पुराण' मे सूर्यवंशी राजाओं की जो वशावली प्राप्त होती है, उसमें इनका नाम नहीं पाया जाता। किन्तु पौराणिक विद्वानों की मान्यता है कि ये इक्ष्वाकुवंश के ही कोई पूर्वपुरुष थे । कारण वाल्मीकीय रामायण के बालकाण्ड मे राम के विवाह प्रसङ्ग मे वसिष्ठ द्वारा शाखोच्चार के समय जिन पूर्ववर्ती राजाओं का नाम गिनाया गया है, उनमें उनतीसवां नाम सुदर्शन का आता है, और इसलिए यह मान लेना तर्कसगत प्रतीत होता है, कि ये राम के पूर्वज वही सुदर्शन हैं। इस कथन मे कहां तक तथ्य है, यह नहीं कहा जा सकता । क्योंकि पौराणिक राजवंशों के सम्बन्ध मे इतिहास लेखकों मे पर्याप्त मतभेद पाया जाता है । किन्तु इतना तो निश्चित ही है, कि इस प्रतिमा की स्थापना सुदर्शन नामक राजा के द्वारा हुई है।