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पौराणिक आचार्य-महानुभाव सती के योगाग्नि-दग्ध शरीर की ज्वाला से आपके इस ज्वालामय शरीर की उत्पत्ति भले ही बतलाते हों, और यह भी संभव है कि यह पौराणिक आख्यान तथ्यभूत भी हो किन्तु हम इस पौराणिक पचड़े में न जाकर इतना ही कहना पर्याप्त मानते हैं कि भक्तों के ज्ञात-अज्ञात पापकर्मों को भस्म कर देने के लिए ही आप ज्योति-शिखा के रूप में प्रकट हुई हैं।
२-व्रजेश्वरी-कांगड़ा में वज्र श्वरी देवी जिनको महामाया भी कहते हैंका अतिप्राचीन ऐतिहासिक मन्दिर है । आगम की परिभाषा में इस पवित्र भूमि का ही दूसरा नाम 'जालन्धर पीठ' है । इसकी गणना शक्ति के प्रधान तीर्थों में की गई है । शक्ति के सुप्रसिद्ध इक्यावन पीठों में जालन्धर पीठ महाशक्ति पीठ माना जाता है । महालक्ष्मी का निवास स्थान होने से इसकी गणना प्रमुख शक्ति पीठों मे की गई है। यहीं पर भगवती वज्रेश्वरी और ज्वालादेवी का प्रधान आवास माना गया है । उक्त दोनों देवियों का उल्लेख देवी भागवत में पाया जाता है। ( देखिये देवी. भाग. ७ स्कन्ध ३८ अ ६ श्लोक ) इसी प्रकार पद्मपुराण में भी 'जालन्धरे विष्णुमुखी ऐसा उल्लेख मिलता है।
पुराणों के लेखानुसार देवराज इन्द्र ने किसी समय भगवती की प्रसन्नता के लिये तपस्या की थी, उसके फलस्वरूप महामाया ने सन्तुष्ट होकर अपने प्रसाद के रूप मे इन्द्र को अमोघ-शक्ति वाला वज्र प्रदान किया था । इन्द्र को अभीष्ट वन देने के कारण तब से इनका नाम वनेश्वरी पड़ गया । उक्त कथा विस्तृत रूप से ब्रह्माण्ड-पुराण मे पाई जाती है । ललिता-सहस्रनाम में-शृङ्गाररससंपूर्ण जया जालन्धरस्थिता।' इत्यादि उल्लेख इस पीठ के महत्त्व का परिचायक है। आगम-ग्रन्थों में भी इस पीठ का बड़ा महत्व बतलाया गया है।
मकर-संक्रान्ति के दिन यहां एक बड़ा मेला भरता है । और घृत तथा तरह तरह के मेवा आदि भगवती को चढाये जाते है। इसके सिवा यहां चैत्र और आश्विन के नवरात्रों मे विशेष रूप से देवीजी के दर्शनार्थ दूर-दूर से आने वाले यात्रियों का तांता सा लगा रहता है। प्रत्यक्षदर्शी आप्तवृद्धों का कथन है, कि यहां आने वाले दर्शकों की मनोभिलापा प्राय. पूर्ण होती देखी गई है। मन्दिर की सेवा पूजा का प्रवन्ध भी चिरकाल से सुव्यवस्थित रहता आया है। यहां के मन्दिर प्रवन्धकों की यह विशेषता रही है कि वे स्वयं कर्मनिष्ट और आगमोक्त