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भले ही वे इक्ष्वाकुवंशी या अन्य किसी राजवंश के क्यों न रहे हों । इस नाम के सम्बन्ध में पुष्पाञ्जलिकार ने प्रस्तुत देवकाली-स्तोत्र के उपसंहार में जो श्लोक लिखा है, उससे भी इस कथन की पुष्टि होती है
'अयोध्याप्रान्तवासिन्याः सुदर्शनकृतस्थितेः ।
देवकाल्याः स्तोत्रमेतत् पठतां घटतां शिवम् ॥' इसमें कोई सन्देह नहीं कि उक्त प्रतिमा अति प्राचीन काल से अवध-प्रान्त में प्रसिद्ध चली आती है । जहां तक जाना गया है, इससे प्राचीन प्रतिष्ठित अन्य कोई शक्ति-प्रतिमा उस प्रान्त मे नहीं है। __मन्दिर के सामने एक विशालवापी (बावड़ी) है जो अनुमानतः मन्दिर के समसामयिक बनी हुई प्रतीत होती है। क्योंकि प्रायः ऐसे स्थानों की स्थिति अधिकतर निर्जन-प्रदेश में ही हुआ करती थी, और वहां जल-सुलभ करने की दृष्टि से वावड़ी या तालाव बनवाये जाने की प्राचीन भारत मे व्यापक प्रथा थी।
आजकल इसके आस पास अनेक धनिकों ने बड़ी-बड़ी कोठियां बनवा डाली हैं, जिससे अव इस स्थान के चारों ओर काफी चहल पहल होगई है, किन्तु तीर्थ के प्राचीन महत्व को इससे धक्का पहुंचा है । खासकर, इसके समीप एक आयल फैक्टरी खुल जाने से कुण्ड के मधुर जल की जो क्षति हुई है और जिस प्रकार जल में तैलांश का सञ्चार होगया है, वह यात्रियों तथा स्वयं मन्दिर के महत्व की दृष्टि से भी चिन्ता का विषय है । अस्तु, यों तो इस प्रान्त की अधिकांश शिक्षित
और अशिक्षित जनता का यहां प्राय. नित्य ही जमघट लगा रहता है किन्तु विशेष रूप से श्रावण के महीने मे और अन्य प्रसिद्ध पर्यों पर दर्शनाथियों और मानता वाले लोगों की यहां काफी भीड़ हो जाया करती है। यहां इन्हीं देवकाली की महिमा का वर्णन दुर्गा-पुष्पाञ्जलि में किया गया है। उदाहरणार्थ दो छन्द उद्धृत किये जाते हैं'ते देवकालि ! कलिसम्पदमर्दयन्ति
दुर्वासनान्धतमसानि विमर्दयन्ति । सौभाग्यसारिणि ! जगन्ति पवित्रयन्ति
ये श्रीमती हृदयवेश्मनि चित्रयन्ति ।।' 'ते देवकालि ! सुखसूक्तिमदभ्रयन्ति
विद्याकलापकृषिमण्डलमभ्रयन्ति ।