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स्तोत्रों का संक्षिप्त विवरण ।
प्रथम-विश्राम । १-परमाथोकलन-इसमें दार्शनिक दृष्टि से जीव ब्रह्म का वास्तविक अभेद बतलाते हुए एकमात्र ईश्वर की सत्ता, व्यापकता और उसके सच्चिदानन्द स्वरूप का परिचय कराया गया है । उसीके द्वारा दृश्य जगत् की सृष्टि, स्थिति
और संहार रूप की क्रियाओं का परिणमन दिखलाया है । शक्ति और शक्तिमान् की अभिन्नता एवं ब्रह्मा-विष्णु-रुद्र आदि भेदक नामों की कल्पना, और ईश्वर के नामरूप की विभिन्नता के होते हुए भी वास्तव में उनकी एकता की स्थिति का प्रतिपादन किया गया है। और इस प्रकार दर्शनों द्वारा विभिन्न भूमिका मे आत्मपरीक्षण किये जाने एवं प्रस्थान-भेद के होने पर भी मौलिक रूप मे उनकी एकवाक्यता का निरूपण किया गया है। - २-जगदम्बा-जयवाद-इसमें शब्द और अर्थ की सृष्टि का प्रकार, उसकी व्यापकता और उसके द्वारा प्रधान रूप से स्थूल जगत् का परिणामन बतलाया गया है। वेदान्तियों की परिभाषा में इसी को नाम और रूप की संज्ञा दी गई है। शास्त्रों में वर्णित परा, पश्यन्ती, मध्यमा और वैखरी इन चारों पारिभाषिक नामों के द्वारा शब्द-ब्रह्म की विभूति के रूप में भगवती के ही विविध रूपों का चित्रण होना दिखलाया है। शक्ति और शक्तिमान् का अभेद होने से शब्द और अर्थ की अभिन्नता और उसकी व्यापकता का संतुलन करते हुए भगवती के शंकर की अर्धाङ्गिनी कहलाने को यथार्थता और उपयोगिता का निदर्शन किया है, और सभी प्रकार के सुख-सौभाग्य की प्रतिष्ठा का प्रधान केन्द्र
बिन्दु बतलाया है। श्रागमोक्त शक्ति-पीठों में प्रधान माने जाने वाले जालन्धर , पीठ की अधिष्ठात्री व शी (महालक्ष्मी) के स्थूल और सूक्ष्म दोनों तरह के संमिलित रूपों का इसमें वर्णन प्रस्तुत किया है।
३-ईहाष्टक-इसमें कांगडा की सुप्रसिद्ध ज्वालादेवी के ऐतिहासिक मन्दिर और वहां के प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन किया गया है । इनके संबन्ध में प्रचलित पौराणिक आख्यान, ज्वाला नाम की प्रसिद्धि और उसकी सार्थकता, एवं उनकी लोकोत्तर महिमा और प्रभाव का चित्रण है । साथ ही भक्तजनोचित हृदय से और किसी बात की आकांक्षा न करते हुए एकमात्र उनके प्रति अटूट श्रद्धा और अपनी भक्ति की स्थिरता के लिए कामना की गई है। भक्त की