________________
पुष्पाञ्जलि में वर्णित प्राचीन शकि-पीठों
का
परिचय।
१-ज्वालामुखी कांगडा घाटी पंजाब प्रान्त (पूर्वी पंजाब ) का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है । यह प्राचीन शक्ति पीठ होने के साथ २ प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से भी हमारे आकर्षण का केन्द्र रहता आया है। यहीं पुराण प्रसिद्ध ज्वालामुखी या ज्वाला देवी का प्राचीन मन्दिर है। भारत के विभिन्न प्रान्तों से यहां प्रतिवर्ष सैकडों की संख्या में 'आस्तिक जनता ज्वाला देवी के दर्शनार्थ आया करती है। ज्वालामुखी का मन्दिर कांगडा नगर से २४ मील की दूरी पर स्थित है। इस पवित्र ऐतिहासिक भूमि को हिमालय की श्वेतधवल पर्वतमालाओं ने दो ओर से घेर रक्खा है। यहां के पार्वत्य प्रदेश में बहने वाले झरने एवं वनवृक्षों की हरित-श्यामल पक्तियां प्राकृतिक दृश्य के सुन्दर नमूने हैं । मन्दिर के बाई ओर एक जल कुण्ड है, जो पर्वत खण्ड को काटकर बनाया गया है। यहां पर्वत के मध्य भाग से प्रवाहित एक धारा का जल गोमुख द्वारा निरन्तर गिरता रहता है। मन्दिर के मध्य भाग में एक हवन कुण्ड है, जहां सदा-सर्वदा स्वयमू ज्योति शिखाये प्रज्वलित रहा करती हैं। यों तो यहां अनेकों स्वयभू ज्योतियां जाज्वल्यमान दिखाई देती हैं, किन्तु प्रचलित प्रथा के अनुसार हिंगुलाज नामक देवी ज्योति तथा महाकाली नामक श्रादि ज्योति को ही सब ज्योतियों में प्रमुखता मानी जाती है। अतएव यात्रियों द्वारा इन्हीं दोनों का प्रधान रूप से पूजन किया जाता है। पूजन हवन द्वारा ही संपन्न होता है। 'दुर्गापुष्पाञ्जलि' के ईहाष्टक मे (देखिये पृ० सं० १६) इन्हीं ज्वालामुखी के प्रभाव एवं महिमा का वर्णन किया गया है।
विशेषता-यहां की स्वयंभू ज्योतियां कभी प्रकट और कभी अपने आप अन्तर्धान होजाया करती हैं । किन्तु प्रत्यक्षदर्शियों के कथनानुसार कम से कम तीन और अधिक से अधिक तेरह ज्योतियां इस मन्दिर मे हमेशा प्रज्वलित दिखाई देती हैं । ज्योतियों का रंग श्वेत-रक्त और पीतवर्ण का रहा करता है।