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सम्पादकीय
चार अनुयोगों में द्रव्यानुयोग बहुत विशाल, जटिल व दुरूह है।
यह तीन भागों में प्रकाशित हो रहा है। प्रथम भाग में २४ अध्ययन लिये गये हैं। 9,000 विषयों का संकलन हुआ है। यह द्वितीय भाग पाठकों के सामने प्रस्तुत है। इसमें संयत, लेश्या, क्रिया, आश्रव, वेद, कषाय, कर्म, वेदना, चार गति, वक्कंति आदि १४ अध्ययनों का संकलन है। कुल ८१२ विषय हैं।
तीसरा भाग भी तैयार हो रहा है। उसमें गर्भ, युग्म, गम्मा, आत्मा, समुद्घात, चरमाचरम, अजीव, पुद्गल इन ९ अध्ययनों का संकलन है। द्रव्यानुयोग बहुत ही गहन विषय है।
इन अध्ययनों में उससे संबंधित पूरा विषय लेने का प्रयत्न किया गया है। अनेक विषय द्वार वाले हैं अतः वे छिन्न-भिन्न न हों इसलिये उनको विभक्त नहीं किया है। तीसरे भाग में परिशिष्ट दिया है जिसमें उन विषयों के पृष्ठांक व सूत्रांक दिये हैं उनका अध्ययन करके पाठक पूर्ण विषय ग्रहण कर सकेंगे अतः पाठक उसका अवलोकन अवश्य करें।
पूज्य गुरुदेव श्री फतेहचन्द जी म. एवं श्री प्रतापमल जी म. के शुभाशीर्वाद से ४५ वर्ष पूर्व यह कार्य प्रारम्भ किया था अब यह कार्य पूर्ण हो रहा है यह मेरे लिए परम प्रसन्नता का विषय है। इस कार्य को सफल बनाने में अनेक भावनाशील श्रुत उपासकों का योगदान प्राप्त हुआ है। जिसमें मेरे शिष्य विनय मुनि का खास सहयोग मिला। उन्होंने सेवा के साथ-साथ अन्तर्हृदय से इस अनुयोग के कार्य को व्यवस्थित किया।
साथ ही महासती जी श्री मुक्तिप्रभा जी अपनी शिष्याओं के साथ आबू पधारी, उन्होंने अनेक परीषह सहन करके लगभग ५ वर्ष तक इस भगीरथ कार्य को सफल बनाने में परिश्रम किया है। .. इस कार्य का प्रारम्भ हरमाड़ा में हुआ था। प्रकाशन अनुयोग प्रकाशन परिषद् साण्डेराव से प्रारम्भ हुआ था फिर इसी कार्य से अहमदाबाद पहुँचना हुआ, वहाँ श्री बलदेवभाई ने इस कार्य को देखा, उन्होंने प्रसन्न होकर ट्रस्ट की स्थापना की व चारों ही अनुयोगों का प्रकाशन वहाँ से हुआ है। गुजराती भाषांतर भी करने की भावना है।
स्वाध्यायशील बंधु इनका स्वाध्याय करके ज्ञानोपार्जन करें।
-मुनि कन्हैयालाल 'कमल'
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