Book Title: Dhyanashatak Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Kanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi Publisher: Prakrit Bharti AcademyPage 13
________________ 1 ध्यान है, उसका सम्बन्ध मात्र स्वरूपानुभूति से है । इसमें आत्मा सविकल्प दशा से निर्विकल्प दशा में स्थित होती है । यह परम समाधि रूप है और मुक्ति का अनन्तर कारण है । यही कारण है कि जैन आचार्यों ने ध्यान के सम्बन्ध में पर्याप्त चिन्तन किया है और उस पर स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखे हैं । ध्यान के सम्बन्ध में लिखे गये ग्रन्थों में 'झाणाज्झयण' अपर नाम ध्यानशतक प्राचीनतम है । ग्रन्थ का नाम-झाणाज्झयण या ध्यानशतक प्रस्तुत ग्रन्थ के नाम को लेकर दो अभिमत प्राचीनकाल से देखने में आते हैं । ग्रन्थकार ने स्वयं इसे ध्यानाध्ययन ( झाणाज्झयण) कहा है। जबकि इसके प्रथम टीकाकार आचार्य हरिभद्रसूरि ने आवश्यकनिर्युक्ति की टीका में इस ग्रन्थ को ध्यानशतक कहा है। वैसे ये दोनों नाम सार्थक ही प्रतीत होते हैं । प्रथम तो लेखक ने ग्रन्थ की प्रथम मंगल गाथा में 'झाणाज्झयण पवक्खामि' कहकर ग्रन्थ . को जो ध्यानाध्ययन नाम दिया है वह इसलिये दिया है कि उन्होंने अपने विशेषावश्यक भाष्य में आवश्यक सूत्र पर भाष्य लिखने की प्रतिज्ञा की थी । नन्दी सूत्र में आवश्यक सूत्र के छः अध्ययनों को छः स्वतन्त्र ग्रन्थों के नाम से ही उल्लेखित किया गया है । उसमें पाँचवाँ आवश्यक कायोत्सर्ग रूप है । कायोत्सर्ग मूलतः ध्यान की ही एक अवस्था है, अतः उस अध्ययन पर भाष्य की दृष्टि से लिखी गई गाथाओं को ध्यानाध्ययन कहा गया है । विशेषावश्यक भाष्य यद्यपि आवश्यक सूत्र के छहों अध्ययनों पर लिखा जाना था, किन्तु प्रस्तुत विशेषावश्यक भाष्य सामायिक अध्ययन पर ही सीमित होकर रह गया, शेष अध्ययनों पर नहीं लिखा जा सका, अतः एक सम्भावना यह भी है कि आचार्य जिनभद्रगणि की रुचि ध्यान में रही हो, इसलिये उन्होंने सामायिक के अध्ययन के बाद ध्यानाध्ययन पर भाष्य गाथाएँ लिखने का प्रयत्न किया हो और उन गाथाओं ने ही आगे चलकर एक स्वतन्त्र ग्रन्थ का रूप ले लिया हो। इसलिये लेखक के द्वारा सूचित ध्यानाध्ययन नाम प्रामाणिक लगता है । आवश्यक नियुक्ति की टीका में आचार्य हरिभद्र द्वारा इसे जो ध्यानशतक नाम दिया गया है वह इसकी गाथा संख्या 105 होने के कारण दिया है, अतः इस ग्रन्थ का ग्रन्थकार के द्वारा दिया गया नाम ध्यानाध्ययन है और टीकाकार हरिभद्रसूरि के द्वारा दिया गया नाम ध्यानशतक है । हरिभद्र के काल में ग्रन्थों का श्लोक या गाथाओं की संख्याओं के आधार पर नामकरण करने की प्रवृत्ति रही है । स्वयं हरिभद्रसूरि ने ही संख्याओं के आधार पर अपने ग्रन्थों का नामकरण किया है। 12 ध्यानशतक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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