Book Title: Dhyanashatak
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Kanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 122
________________ तह सोज्झाइसमत्था जीवंबर-लोह-मेइणिगयाणं। झाण-जलाऽणल-सूरा कम्म-मल-कलंक-पंकाणं ।।११।। जिस प्रकार पानी वस्त्र पर लगे मैल को धोकर उसे स्वच्छ कर देता है उसी प्रकार ध्यान जीव से संलग्न कर्मरूप मैल को धोकर उसे शुद्ध कर देता है, जिस प्रकार अग्नि लोहे पर लगे कलंक (जंग आदि) को दूर कर देती है उसी प्रकार ध्यान जीव से संबद्ध कर्मरूप कलंक को पृथक् कर देने वाला है, तथा जिस प्रकार सूर्य पृथ्वी के कीचड़ को सुखा देता है उसी प्रकार ध्यान जीव से संलग्न कर्मरूप कीचड़ को सुखा देने वाला है। व्याख्या : जिस प्रकार वस्त्र पर लगे मैल का शोधन जल करता है, लोह पर लगे जंग का अग्नि अपनयन करती है, धरती पर रहे कीचड़ का सूर्य शोषण करता है, उसी प्रकार जीव रूपी वस्त्र पर लगे कर्ममल का शोधन ध्यान रूपी जल करता है। जीव रूप लोह पर लगे कलंक (दोष) का अपनयन ध्यान रूपी आग करती है और जीव रूपी धरती पर विद्यमान कीचड़ का शोषण ध्यान रूपी सूर्य करता है। • ध्यान से त्रिविध योगों के शोधनपूर्वक कर्मशोधन को प्रस्तुत करते हैं:तापो सोसो भेओ जोगाणं झाणओ जहा निययं । तह ताव-सोस-भेया कम्मस्स वि झाइणो नियमा ।। 100 ।। जिस प्रकार ध्यान से (मन, वचन, काया के) योगों का ताप (सुखाना) तथा शोषण (कृश करना) और भेदन (विदारण) नियम से होता है उसी प्रकार ध्यान से ध्याता के कर्मों का भी ताप-शोषण और भेदन अवश्य होता है। व्याख्या : त्रिविध योग से कर्मबन्ध होता है, अत: ध्यान द्वारा योगों का ताप शोषण और भेदन होने से ध्यान द्वारा कर्मों का भी ताप-शोषण-भेदन होता है। • ध्यान से कर्माशय शमन को सोदाहरण प्रस्तुत करते हैं: जह रोगासयसमणं विसोसण विरेयणोसहविहीहिं। तह कम्मासयसमणं झाणाणसणाइजोगेहिं ।। 101 ।। जिस प्रकार रोगाशय (रोग के निदान) की चिकित्सा विशोषण और विरेचन औषध के विधान से होती है उसी प्रकार कर्माशय का शमन ध्यान तथा अनशनादि तप योगों से होता है। ध्यानशतक 121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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