Book Title: Dhyanashatak
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Kanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 121
________________ पूर्वोक्त गाथा द्वारा कथित शुभासव, संवर, निर्जरा की विशेष प्राप्ति तथा अनुत्तर विमानवासी देवों का सुख मिलना—यह शुक्ल ध्यान के प्रथम दो प्रकारों का फल है और अन्तिम दो प्रकार के शुक्ल ध्यान का फल परिनिर्वाण प्राप्ति है। व्याख्या : धर्म ध्यान के फल शुभास्त्रव, संवर, निर्जरा और अमरसुख इनमें विशेष रूप से उत्तरोत्तर वृद्धि होना, प्रारम्भ के दो शुक्ल ध्यान (पृथक्त्व-वितर्क-सविचार और एकत्व-वितर्क-अविचार) का भी फल है। अन्तिम दो शुक्ल ध्यान सूक्ष्म क्रिया अनिवृत्ति और व्युपरतक्रिया अप्रतिपाति का फल मोक्ष की प्राप्ति है। • ध्यान को मोक्ष का हेतु बताते हैं: आसवदारा संसारहेयवो जं ण धम्म-सुक्केसु। संसारकारणाइ तओ धुवं धम्मसुक्काई ।।96।। संवर-विणिज्जराओ मोक्खस्स पहो तवो पहोतासिं। झाणं च पहाणंगं तवस्स तो मोक्खहेऊयं ।।97 ।। पहले गाथा 94 में धर्म ध्यान व शुक्ल ध्यान का फल शुभासव, संवर, और निर्जरा कहा है। इस गाथा में कहा है धर्म ध्यान व शुक्ल ध्यान में वे आसव, जो संसार के कारण हैं, वे नहीं होते तथा धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान मोक्ष के हेतु हैं। इससे यह फलित है कि शुभ (पुण्य) आस्रव और शुभ (पुण्य) कर्मों का बन्ध संसार-भ्रमण का कारण नहीं है अपितु मोक्ष का कारण है। शुभ आस्रव शुभ (पुण्य) बन्ध कषाय की क्षीणता (घटने) से होता है। कषाय ही संसार का कारण है; कषाय का घटना मुक्ति की ओर अग्रसर करना है। शुभ (पुण्य) अघाति होते हैं, अतः इनसे जीव के किसी गुण की हानि कभी नहीं होती है। व्याख्या : जो (मिथ्यात्व आदि) आस्रवद्वार संसार के कारण हैं वे चूँकि धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान में सम्भव नहीं हैं, इसलिए यह ध्रुव नियम है कि ये ध्यान नियमत: संसार के कारण नहीं हैं (किन्तु मुक्ति के कारण हैं), संवर और निर्जरा मोक्ष के मार्ग हैं, उनका पथ तप है और उस तप का प्रधान अंग ध्यान है। अतः ध्यान मोक्ष का हेतु है। • ध्यान कर्ममल का अपनयन करता है। स्पष्ट करते हैं: अंबर-लोह-महीणं कमसो जह मल-कलंक-पंकाणं । सोज्झावणयण-सोसे साहेति जलाऽणलाऽऽइच्चा ।।98 ।। 120 ध्यानशतक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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