Book Title: Dhyanashatak
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Kanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 125
________________ जिनभद्र क्षमाश्रमण ने यति की कर्मविशुद्धि करने वाले ध्यान के अध्ययन को एक सौ पाँच गाथाओं द्वारा कहा है। व्याख्या : सारांश यह है कि जिनभद्र क्षमाश्रमण द्वारा निरूपित ध्यान सर्वगुणों का आधार, कर्मनिर्जरा का हेतु, मानसिक व शारीरिक रोगों के दुःखों से बचाने वाला, अलौकिक सुख देने वाला होने से प्रशंसनीय, ज्ञेय, श्रद्धेय और साधकों के लिए अनुशीलन करने योग्य है। ।। इति ।। 124 ध्यानशतक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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