Book Title: Dhyanashatak
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Kanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 54
________________ 56. ध्यानशतक, सम्पा. बालचन्द्र शास्त्री, वीर सेवा मन्दिर, दिल्ली, 1976, प्रस्तावना, पृष्ठ 2 से 73 57. 'तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स.............. सुक्कज्झाणंतरियाए वट्टमाणस्स णिव्वाणे........केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे।। 1028।।' अङ्गपविट्ठ सुत्ताणि, (सम्पा.) डोशी एवं चण्डालिया, अ.भा. सा. जैन संस्कृति रक्षक, सैलाना, 1979, पृष्ठ 103 58. (क) 'धम्म-सुक्काई झाणाई, झाणं तं तु बुहा वए.....' उत्तराध्ययन, 30.35. (ख) से किं तं झाणे?......सुक्कज्झाणे......पण्णत्ते....' औपपातिकसूत्र, श्लोक 30; भगवती व्याख्या प्रज्ञप्ति, 25.7.237 एवं 246; स्थानाङ्गसूत्र, 4.1.308 (ग) 'सुक्कज्झाणोवगए विहरइ', ज्ञाताधर्मकथा, अध्ययन 6/14, अंगपविठ्ठ-सुत्ताणि III, पृष्ठ 1137 59. (क) '....शुक्ल ध्यानपरायणः.... शरीररमुत्सृज्य संन्यासेनैव देहत्यागं करोति, स कृतकृत्यो भवति......' नारदपरिव्राजक उपनिषद्, 3.86 कल्याण, उपनिषद् अङ्क, गीताप्रेस, गोरखपुर, 1949, पृष्ठ 742 (ख)'....शुक्ल ध्यानपरायणाः....संन्यासेन देहत्यागं करोति स परमहंस..' जाबाल उपनिषद्, 6 (ग) '.....शुक्ल ध्यानपरायणः.....संन्यासेन देहत्यागं कुर्वन्ति ते परमहंसा..' भिक्षुक उपनिषद् (घ)'....शुक्ल ध्यानपरायणः....संन्यासेन देहत्यागं करोति स परमहंस परिव्राजको भवति.....' परमहंस परिव्राजक उपनिषद् (ङ)'...... शून्यागार..... वृक्षमूलकुलालशाला..... गिरिकुहरकोटर.... स्थंडिलेषु संन्यासेन देहत्यागं करोति.....' याज्ञवल्क्य उपनिषद्, 1 60. 'वीरं सुक्कज्झाणग्गिदड्ढकम्मिंधणं.. । जोईसरं सरणं..' ध्यानशतक, 1 61. 'धूमहीणो जहा अग्गी, खीयइ से निरिंधणे। एवं कम्माणि खीयंति मोहणीज्जे खयं गये ।।' दशवैकालिक सूत्र, 5.121 62. मैत्रायणी उपनिषद्, 4.6 63. 'जहा दड्डाण बीयाणं न जायंति पुणंकुरा । कम्मबीएसु दड्डेसु न जायंति भवंकुरा ।। दशाश्रुतस्कन्ध, 5.123 64. भगवद्गीता, 4.19 65. आचाराङ्ग चूर्णि, (सम्पा.) ऋषभदेवजी केसरीमलजी श्वेताम्बर संस्था, रतलाम, 1941 66. (क) 'कर्माशुक्लाकृष्णं योगिनस्त्रिविधंमितरेषाम्' योगसूत्र IV/7 (ख) 'कम्म....कण्हं.....सुक्कं....कण्हसुक्कं....अकण्हं...असुक्कं अंगुत्तर निकाय, II/4/ 233 67. मज्झिम निकाय, 63.1.3.7 । 68. 'सति च सम्पजज्ञञ्च' दीघनिकाय, III/352 69. 'सतो भिक्खवे, भिक्खू विहरेय्य सम्पजानो......कथञ्च......सतो होंति? इध,.....काये कायानुपस्सी विहरति.....वेदनासु वेदनानुपस्सी.....चित्तेचित्ता-नुपस्सी.......धम्मे धम्मानुपस्सी, विहरति......एवं खो भिक्खू सतो होति।' दीघनिकाय, II/160 70. (क) 'भिक्खू सव्वसो......सावेदयितनिरोधं......आसवणपरिक्खीणा होति'... मज्झिम निकाय 1.271, पातञ्जल योगसूत्र, बुद्धवाणी के परिप्रेक्ष्य में, पृष्ठ-66 (ख) 'तुवंबुद्धो..... । तुवं अनुसये छेत्वा, तिण्णो तारसिमं पजं ।। मज्झिमनिकाय, 1/400 प्रस्तावना 53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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