Book Title: Dhyanashatak Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Kanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi Publisher: Prakrit Bharti AcademyPage 74
________________ और प्रसन्न होना; व्यापारिक अथवा अन्य कामों में धोखेबाजी कर एवं प्रपंच फैलाकर दूसरे को ठगने का विचार करना और उसमें प्रसन्न होना भी मृषानुबंधी रौद्र ध्यान है। वकील का व्यवसाय कर अपनी बौद्धिक निपुणता से सत्य को झूठ और झूठ को सत्य कर अपने वादी को विजयी बनाना, निरपराध प्रतिवादियों को हराकर उन्हें भयंकर दु:खी कर देना और प्रसन्न होना; चिकित्सक का व्यवसाय कर रोगी के साधारण व तुच्छ रोग को बढ़ा-चढ़ा कर उसे भयभीत कर देना और उससे अपना स्वार्थ सिद्ध करना; झूठे दस्तावेज बनाकर दूसरों का माल हड़प लेना, झूठे विज्ञापन देना, हानिकारक वस्तुओं को लाभकारी बताकर बेचना; सम्मान, संपत्ति, भेंट, पूजा, सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिये मिथ्या चमत्कार आदि दिखाकर अपने धर्म के मायाजाल में भक्तों को फँसाना; चुनावों में मतदाता को झूठे आश्वासन व प्रलोभन देना आदि भी मृषानुबन्धी रौद्र ध्यान हैं। •स्तेयानुबंधी रौद्र ध्यान का निरूपण करते हैं: तह तिव्वकोह-लोहाउलस्स भूओवघायणमणज्जं। परदव्वहरणचित्तं परलोयावायनिरवेक्खं ।। 21।। तीव्र क्रोध और लोभ में आकुल होकर प्राणियों का उपहनन, अनार्य आचरण और दूसरे की वस्तु का अपहरण करने का चिन्तन करना तथा पारलौकिक अपायों-नरक गमन आदि से निरपेक्ष रहना रौद्र ध्यान का 'स्तेयानुबंधी' नामक तृतीय प्रकार है। व्याख्या: इसी प्रकार तीव्र क्रोध और लोभ से आकुल व्यक्ति का ध्यान प्राणियों की हिंसा के भाव से अनार्य अर्थात् निन्दनीय होता है; दूसरों के द्रव्य को हरण करने में रत चित्त वाला होता है; परलोक में होने वाले अपाय (नीचगति की प्राप्ति आदि) से निरपेक्ष होता है अर्थात् नीचगति की परवाह नहीं करता। यह अदत्तानुबंधी रौद्र ध्यान है। चोरी करने की सदा चिन्ता करना, चोरी करके अतिहर्ष मनाना, अन्य से चोरी कराना, चोरी से लाभ की प्राप्ति पर खुश होना, चोरी के काम में कलाकौशल बताने वाले की प्रशंसा करना इत्यादि विचार स्तेयानुबंधी रौद्र ध्यान हैं, जो अतिनिंदनीय हैं। ध्यानशतक 73 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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