Book Title: Dhyanashatak
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Kanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 102
________________ अनित्यानुप्रेक्षा से वैराग्य, अशरणानुप्रेक्षा से पराश्रय (परिग्रह) का त्याग, संसारानुप्रेक्षा से संसार से अतीत के जगत् में प्रवेश होता है। इसे ही आगम की भाषा में व्युत्सर्ग एवं कायोत्सर्ग कहा है। व्युत्सर्ग अर्थात् लोकातीत होना, कायोत्सर्ग अर्थात् देहातीत होना ध्यान से उत्तरवर्ती स्थिति है। • धर्म ध्यानी की लेश्याओं का वर्णन करते हैं:होंति कमविसुद्धाओ लेसाओ पीय-पम्म-सुक्काओ। धम्मज्झाणोवगयस्स तिव्व-मंदाइभेयाओ ।। 67 ।। धर्म ध्यान में स्थित ध्याता के ध्यान के समय पीत (तेजः), पद्म और शुक्ल-ये तीन लेश्याएँ क्रमश: विशुद्ध होती हैं। परिणामों के आधार पर वे तीव्र या मन्द होती हैं। व्याख्या : कर्म के निमित्त से आत्मा का जो परिणाम होता है वह लेश्या है। लेश्या छ: प्रकार की है-1. कृष्ण लेश्या, 2. नील लेश्या, 3. कापोत लेश्या, 4. पीत लेश्या (तेजो लेश्या), 5. पद्म लेश्या और 6. शुक्ल लेश्या। इनमें से प्रथम तीन अशुभ व अन्तिम तीन शुभ हैं। धर्म ध्यानी के जो पीत आदि तीन शुभ लेश्याएँ होती हैं वे क्रम से विशुद्धि को प्राप्त हैं। पीत लेश्या की अपेक्षा पद्म और पद्म लेश्या की अपेक्षा शुक्ल लेश्या उत्तरोत्तर विशुद्ध हैं। इनमें प्रत्येक तीव्र, मध्यम और मन्द भेदों वाली है। धर्म ध्यान को प्राप्त हुए जीव के तीव्र, मन्द आदि भेदों को लिए हुए क्रम से विशुद्धि को प्राप्त हुई पीत, पद्म और शुक्ल लेश्याएँ होती हैं। • धर्म ध्यान के लक्षणों का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं: आगम-उवएसाऽऽणा-णिसग्गओ जं जिणप्पणीयाणं । भावाणं सद्दहणं धम्मज्झाणस्स तं लिंगं ।। 68 ।। आगम, उपदेश, आज्ञा और निसर्ग के अनुसार आचरण करने वाले की जो जिन-प्रतिपादित भावों (तत्त्वों, पदार्थों) में श्रद्धा है, वह धर्म ध्यान का लिङ्ग है। तात्पर्य यह है कि आगम रुचि, उपदेश रुचि, आज्ञा रुचि और निसर्ग रुचि यह चार प्रकार की रुचि (श्रद्धा) धर्म ध्यान का लक्षण है। व्याख्या : जिनसे यह पहचाना जा सके कि अमुक व्यक्ति धर्म ध्यान की स्थिति में है, ध्यानशतक 101 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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