Book Title: Dhyanashatak
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Kanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 103
________________ उनको लिंग लक्षण कहते हैं। धर्म ध्यान के ये चार लक्षण निम्न नामों से जाने जाते हैं: 1. आगम रुचि (सूत्र रुचि), 2. उपदेश रुचि, 3. आज्ञा रुचि, 4. निसर्ग रुचि । (1) आगम रुचि-इसे सूत्र रुचि भी कहा जाता है। सूत्रों का संकलन आगम कहलाता है। आगम से तत्त्वार्थ का ज्ञान हो जाता है, जिससे संसार से विरति होती है, विरति से आत्म-विशुद्धि होती है। आगम रुचि या सूत्र रुचि उसे ही होती है, जिसे मुक्ति प्राप्ति के लिए लोक से विरति हो जाती है, इसीलिये वह आगम के अनुसार आचरण करता है। लोक-विरति संस्थान विचय से होती है और संस्थान विचय ध्यान का अंग है, अत: आगम रुचि अथवा सूत्र रुचि ध्यान का अभिन्न अंग है। (2) उपदेश रुचि-जिससे सही दिशा का निदर्शन हो उसे उपदेश कहते हैं। सही दिशा का अर्थ है जिस ओर चलने से सही लक्ष्य तक पहुँचा जा सके। ध्याता का लक्ष्य आत्मा के दोषों से मुक्त होकर के शुद्ध स्वभाव को प्राप्त करना होता है, अत: जिस वीतराग-वाणी के ज्ञान से अथवा जिस धर्म ध्यान से आत्मा को शुद्ध स्वभाव की प्राप्ति होती है, वह उपदेश कहा जाता है। उपदेश दो प्रकार से ग्रहण किया जाता है-(1) स्वानुभव से, (2) दूसरों के अनुभव बोध के श्रवण से। भोगासक्ति को कर्मबन्धन का कारण जानकर छोड़ने वाला व्यक्ति ही उपदेश ग्रहण की योग्यता रखता है, जिससे वह पुनः कर्मबन्धन से होने वाली प्रवृत्ति से बच जाता है। उपदेश ग्रहण रुचि उसे होती है, जो कर्म विपाक के वीभत्स परिणाम को जानकर उससे मुक्ति चाहता है। कर्म विपाक अपाय विचय धर्म ध्यान का अंग है, अत: उपदेश रुचि धर्म ध्यान को अभिव्यक्ति करने वाला लक्षण कहा गया है, क्योंकि वह जिन-वाणी उपदेश के अनुसार आचरण करता है। (3) आज्ञा रुचि-वीतराग प्ररूपित धर्म-मार्ग आज्ञा है और आज्ञा के अनुसार तत्त्वार्थ में रुचि और संसार व्यवहार से उदासीनता का आचरण करना आज्ञा रुचि है। रुचि ग्रहण किये गये विषय में होती है, अगृहीत में नहीं; इस न्याय से आज्ञा में रुचि तभी होगी जब आज्ञा का ग्रहण होगा। आज्ञा ग्रहण आज्ञा-विचय से ही सम्भव है। जहाँ आज्ञा रुचि है वहाँ आज्ञा विचय है। आज्ञा विचय धर्म ध्यान का अंग है, अत: आज्ञा रुचि धर्म ध्यान की अभिव्यक्ति का लक्षण कहा गया है। (4) निसर्ग रुचि ज्ञानवरणीय और दर्शन मोह के क्षयोपशम से सहज 102 ध्यानशतक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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