Book Title: Dhyanashatak
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Kanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 104
________________ भाव से स्वभाव में रुचि होना निसर्ग रुचि है। विषय भाव या विभाव से विरति होने से स्वतः स्वभाव में रुचि होना निसर्ग रुचि है, जिसे आर्त-रौद्र ध्यान कटु लगते हों, हिंसा, झूठ, चोरी, परिग्रह, कुशील, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि में अरुचि हो और अहिंसा, सत्य, अस्तेय, परिग्रह-परिमाण, शील, शान्ति, संयम रूप स्वधर्म में रुचि हो, वही निसर्ग रुचि है जो यह धर्म ध्यान का लक्षण है। निसर्ग रुचि अपाय विचय का परिणाम है, अत: निसर्ग रुचि को धर्म ध्यान का भी लक्षण माना है। • धर्म ध्यान का उपसंहार करते हैं:जिणसाहूगुणकित्तण-पसंसणा-विणय-दाणसंपण्णो। सुअ-सील-संजमरओ धम्मज्झाणी मुणेयव्वो ।। 69 ।। धर्म ध्यानी उसे जानना चाहिए जो जिन और साध के गणों का कीर्तन करता है, प्रशंसा करता है, विनय करता है, दान देता है तथा श्रुत, शील और संयम में रत रहता है। व्याख्या : तत्त्वार्थ श्रद्धा धर्म ध्यानी की पहचान है। इसके अतिरिक्त धर्म ध्यानी के अन्य गुणों का उल्लेख प्रस्तुत गाथा में किया गया है। अर्हत् जिनेश्वरों तथा साधुजनों के गुणों का गान करना कीर्तन है, भक्तिपूर्वक स्तुति करते हुए गुणों की अत्यन्त श्लाघा करना प्रशंसा है, अगवानीपूर्वक आदर प्रदर्शन विनय है, अन्नादि देना दान है। धर्म ध्यान का ध्याता सामायिक आदि करता हुआ, व्रत संरक्षण करता हुआ श्रुत-शील और संयम की आराधना करता है। शुक्ल ध्यान • धर्म ध्यान के निरूपण के पश्चात् शुक्ल ध्यान का निरूपण करते हैं: अह खंति-महवऽज्जव-मुत्तीओ जिणमयप्पहाणाओ। आलंबणाइँ जेहिं सुक्कज्झाणं समारुहइ ।।70।। जिनमत में क्षमा, मृदुता, ऋजुता, निर्लोभता आदि गुणों की प्रधानता है। इन आलम्बनों से मुनि शुक्ल ध्यान में आरूढ़ होता है। व्याख्या : क्षमा, मार्दव, आर्जव और मुक्ति-ये जिन-मत में प्रधान आलम्बन कहे गये हैं जिनका सहारा लेकर साधु शुक्ल ध्यान पर आरोहण करते हैं। ध्यानशतक 103 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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