Book Title: Dhyanashatak Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Kanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi Publisher: Prakrit Bharti AcademyPage 75
________________ बोल में, मोल में, तोल में, माप में, छाप में, जवाब में ठगाई चलाकर, जहाँ तक हो सके, वहाँ तक दूसरों को ठगने, लूटने में कोई कसर नहीं रखना। ग्राहक को विश्वास में लेने के लिये गाय की, बच्चे की, भगवान् की सौगंध खा जाना । इष्ट लाभ होने पर प्रसन्न होना। अच्छा माल बतलाकर खोटा माल देना। अच्छे में बुरा माल मिलाकर देना। हिसाब में, ब्याज में, गिरवी में अनेक प्रकार की अपहरण की क्रियाएँ करना। अपनी धूर्तता को बुद्धिमानी समझकर हर्षित होना, ये सभी चौर्यानुबंधी रौद्र ध्यान हैं। चोर, चोरी करके वस्तु लाया हो उसे सस्ते भाव से लेकर हर्षित होना, चोर को सहायता देना, उससे चोरी करवाना और वह माल स्वयं लेकर आनन्द अनुभव करना इत्यादि धन हरण के सब कार्य अदत्तादानानुबंधी रौद्र ध्यान हैं। • विषयसंरक्षणानुबंधी या परिग्रहानुबंधी रौद्र ध्यान का निरूपण करते हैं: सद्दाइविसयसाहणधणसारक्खणपरायणमणिहूँ। सव्वाभिसंकणपरोवघायकलुसाउलं चित्तं ।। 22 ।। तीव्र क्रोध और लोभ से आकुल व्यक्ति का चित्त (ध्यान/योग) शब्दादि विषयों की प्राप्ति के साधन, धन की रक्षा में संलग्न रहना, अनिष्ट चिन्तन में रत रहना, सभी के प्रति शंकालु होना, दूसरों का घात करने के (विचार वाले) कषायों से आकुल रहना। यह रौद्र ध्यान का परिग्रहानुबंधी अथवा विषयसंरक्षणानुबंधी नामक चतुर्थ प्रकार है। व्याख्या : रौद्र (क्रूर) चित्त होकर विविध प्रकार से आरम्भ-परिग्रह की रक्षा के लिये प्रयत्न करना, यह खो न जाये, नष्ट न हो जाये, इसके लिये चिंतित व भयभीत रहना विषयसंरक्षण रौद्र ध्यान कहा है। द्रव्य को तिजोरियों में, लॉकर में रखू , जिससे अग्नि, चोर आदि हानि नहीं पहुँचा सकें। मितव्ययता बरतूं, अल्प-व्यय में अपनी जीविका चलाऊँ, अल्प मूल्य की वस्तुएँ काम में लाऊँ आदि अनेक उपायों से द्रव्य का रक्षण करूँ इत्यादि विविध प्रकार की सम्पत्ति और सन्तति के रक्षण के लिए चिन्तित रहना विषयसंरक्षण रौद्र ध्यान है। तात्पर्य यह है कि अपने तन, धन, रक्षण का और अन्य के लिये परिताप पैदा करने का ही चिन्तन चलना संरक्षणानुबंधी रौद्र (भयंकर) ध्यान है। 74 ध्यानशतक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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