Book Title: Dhyanashatak Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Kanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi Publisher: Prakrit Bharti AcademyPage 52
________________ 11. पंचुत्तरेण गाहासएण झाणस्स यं समक्खायं । जिणभद्दखमासमणेहिं कम्मविसोहीकरणं जइणो । । ध्यानशतक, गाथा 106 12. गणधरवाद, (सम्पादक) दलसुख मालवणिया, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर, 1982, प्रस्तावना, पृष्ठ-47 13. उक्तं च भाष्यकारेण 'दोवारे विजयाइसु गयस्स तिण्णच्चुए, अहवं ताई । अइरेगं णरभविअं णाणाजीवाण सव्वद्धं । 11 ।।' आवश्यकनिर्युक्ति, भाग-1, पृष्ठ-5 अइरेगं नरभवियं, नाणा जीवाण 14. 'दोवारे विजयाईसु गयस्स तिन्नच्चुए अहव ताई । सव्वद्धं । 1436 ।।' विशेषावश्यक भाष्य, भाग-1, पृष्ठ- 123 15. आवश्यकनिर्युक्ति, भाग-1, गाथा - 734 पर वृत्ति, पृष्ठ-184 16. तं च महासेण वणोवलक्खियं.....' विशेषावश्यक भाष्य, गाथा 2089, पृष्ठ 432 17. 'खेत्तं मयमागासं सव्वदव्वावगाहणालिंगं...' जिनभद्र: विशेषावश्यक भाष्य, गाथा - 2088, पृष्ठ-432 18. 'तत्र चादौ तावद्.. गुरुवएसाणुसारेणं ।।11।' विशेषावश्यक भाष्य, भाग- 1, गाथा - 1, पृष्ठ-1 चाह भाष्यकार:-- कयपवयणप्पणामो ates..... 19. विशेषावश्यक भाष्य, भाग-1, पृष्ठ- 151 20. 'तच्चेदम् - अभिणिबोहियनाणं. 21. आवश्यकनिर्युक्ति, भाग-1, पृष्ठ 81 22. ध्यानशतक, (सम्पादक) बालचन्द्र शास्त्री, वीर सेवा मन्दिर, दिल्ली, 1976, सम्पादकीय, पृष्ठ - 11 23. वही, प्रस्तावना, पृष्ठ-2 ।। 1 ।।' आवश्यकनिर्युक्ति, भाग-1, गाथा - 1, पृष्ठ-5 24. वही, प्रस्तावना, पृष्ठ 2-3 25. युज् समाधौ (दिवादिगणीय- युज्यते आदि), पाणिनीय धातुपाठ, 4/68 26. उत्तराध्ययनसूत्र, 29/8 27. अंगुत्तरनिकाय, 2/12; अभिधर्मकोश, 5/40 28. तत्त्वार्थसूत्र, 6/12 29. युजिर् योगे ( रुधादिगणीय- युनक्ति, युङ्क्ते आदि), पाणिनीय धातुपाठ, 7/7 30. आवश्यकनिर्युक्ति II, गाथा, 1232, पृष्ठ 41 एवं गाथा 1250, पृष्ठ 50; 'दसविहे समणधम्मे समणाणं जोगाणं जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छामि दुक्कडं' आवश्यक सूत्र, पृष्ठ 54 Jain Education International 31. 'झाणजोगं समाहट्टु कायं वोसेज्ज सव्वसो', सूत्रकृताङ्ग, 1/8/27 32. 'इह जीवियं अणियमित्ता पब्भट्टा समाहिजोगेहिं', उत्तराध्ययन, 8 / 14 33. 'तवं चिमं संजमजोगयं च सज्झायजोगं च सया अहिट्ठए', दशवैकालिक, 8/61 34. 'अज्झप्पझाणजोगेहिं पसत्थदमसासने', उत्तराध्ययन, 19/93 35. 'सामणाणं जोगाणं जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छामि दुक्कडं', आवश्यक सूत्र, 15, 35, पृष्ठ - 54 36. 'बत्तीसं जोगसंगहा प. तं. - आलोयण.......य मरणंते, बत्तीस जोगसंगहा ।।' समवायाङ्ग, 32 / 1 से 5, अंगपविट्ठ सुत्ताणि, I श्रुतस्कन्ध, पृष्ठ-373-374 For Private & Personal Use Only प्रस्तावना 51 www.jainelibrary.orgPage Navigation
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