Book Title: Dhyanashatak Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Kanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi Publisher: Prakrit Bharti AcademyPage 51
________________ आचाराङ्ग सूत्र में शुक्ल ध्यान के उक्त लक्षणों में से 'अव्वहित' खंति-मुक्ति के साथ में उपलब्ध है।16 ध्यानशतक में शुक्ल ध्यान की चार अनुप्रेक्षाओं का उल्लेख करते हैंअवाय (सांसारिक दु:ख अथवा दुष्कर्मों का आस्रव), असुह (संसार का अशुभ स्वरूप वाला होना), भवसंताणमणंतं (अनन्तवृत्तिता अर्थात् संसार परम्परा का अनन्त होना), वत्थूणं विपरिणामं (वस्तुओं का परिणमनशील स्वभाव)।117 ध्यान के लिए चित्त को सुभावित रखने में सहायक होने से अनुप्रेक्षा का महत्त्व है।118 प्राचीन जैन परम्परा के अनुसार 12 अनुप्रेक्षाओं का उल्लेख समिति-गुप्ति आदि के वर्णन से परवर्ती है। संस्थानविचय (धर्म ध्यान के अन्तिम प्रकार) के बाद अनुप्रेक्षा का वर्णन है जो संस्थानविचय से सम्बद्ध प्रतीत होता है, किन्तु सामान्यतया उसे सम्पूर्ण धर्म ध्यान के साथ सम्बद्ध किया जाता है, यह शोध का विषय है। --डॉ. सुषमा सिंघवी निदेशक, वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय क्षेत्रीय केन्द्र, जयपुर (राजस्थान) सन्दर्भ सूची 1. ध्यानशतक, 1, आवश्यकनियुक्ति, भाग - 2, पृष्ठ 61 2. ध्यानशतक, (अन्तिम गाथा), Descriptive catalogue of the Government Collection of Manuscripts, No. 1055, 1056, Vol. xvii, pt. 3, p. 415 416, Bhandarkar Oriental Research Institute, Pune, 1940 3. अभिधान राजेन्द्र कोश, भाग 4, पृष्ठ 1670 4. आवश्यकनियुक्ति, भाग-2, श्री भैरूलाल कन्हैयालाल कोठारी धार्मिक ट्रस्ट, मुम्बई, विक्रम सम्वत्, पृष्ठ 61 5. अभिधान राजेन्द्र कोश, भाग-4, श्रीमद्विजयराजेन्द्र सूरीश्वर, श्री अभिधान राजेन्द्र कार्यालय, रतलाम, सन् 1981, पृष्ठ 1666 6. जैन योग के सात ग्रन्थ (अनु.), मुनि दुलहराज, जैन विश्व भारती, लाडनूं, 1995, पृष्ठ 34 7. अभिधान राजेन्द्र कोश; भाग-4, पृष्ठ 1670 8. आवश्यकनियुक्ति, भाग-2, पृष्ठ-70 9. अभिधान राजेन्द्र कोश, भाग-4, पृष्ठ-1672 10. विशेषावश्यक भाष्य II, दिव्यदर्शन ट्रस्ट, मुम्बई, वि.सं. 2039, हेमचन्द्र कृत बृहद्वृत्ति, 3602-3603, पृष्ठ 677 50 ध्यानशतक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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