Book Title: Dhyanashatak
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Kanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 49
________________ जिनभद्र क्षमाश्रमण ने जैन परम्परानुसार ध्यान के देश-काल-आसन विशेष के लिए कोई अनिवार्यता स्वीकार नहीं की है, ध्यान में जो सहायक हो वही ध्यान का देश-काल-आसनविशेष उचित है। शेष द्वारों को अत्यन्त सरल तरीके से समझाया गया है। चार प्रकार के ध्यान __ आर्त ध्यान में इन्द्रिय सुख को प्राप्त तथा दुःख से छूटने की चिन्ता रहती है। आर्त ध्यान के चार लक्षण हैं-क्रन्दन, शोचन, परिवेदन और ताड़न (अथवा आक्रन्दन, शोक, तिप्पण और विलपन)। रौद्र ध्यान को चार व्रतों के विपरीत व्यवहार करने से जोड़ा गया है जैसे---हिंसा, मृषा, स्तेय, संरक्षण (परिग्रह)। इस ध्यान के चार लक्षण इस प्रकार हैं (जो दोष कहे गये हैं)उत्सन्न, बहल, अज्ञान (नानाविध) और आमरण । ०० भगवद्गीता में वर्णित आर्त, अर्थार्थी107 तथा आसुरी प्रवृत्तियों के साथ तुलना की जा सकती है। आर्त और रौद्र ध्यान संसारी व्यक्तियों के ऐसे व्यवहार का वर्णन करता है जो निन्दनीय है, अधम गति में ले जाने वाला तथा बन्धकारी है। 103 आर्त और रौद्र ध्यान हेय हैं, त्याज्य है, इसीलिये आर्त और रौद्र ध्यान के आलम्बन और अनुप्रेक्षा द्वार नहीं हैं। ध्यानशतक तथा आवश्यकचूर्णि में धर्म ध्यान के चार प्रकारों.---आणा (आज्ञा) विचय, अवाय (अपाय) विचय, विवाग (विपाक) विचय तथा संठाण (संस्थान) विचय का निरूपण किया गया है।104 आवश्यकचूर्णि में वर्णित चार अनुप्रेक्षाओं, अणिच्च (अनित्य), असरण (अशरण), एगत्त (एकत्व) और संसार की तुलना के लिए ध्यानशतक द्रष्टव्य है;105 णिसग्गरुइ (निसर्गरुचि), आणारुइ (आज्ञारुचि), सुत्त रुइ (सूत्र रुचि) और ओगाढ़रुइ (अवगाढ़ रुचि)—ये चार धर्म ध्यान के लक्षण हैं, जो ध्यानशतक से तुलना योग्य हैं।106 ___ धर्म ध्यान के लक्षण के अन्तर्गत आज्ञा आदि चार रुचि के वर्णन का आधार उत्तराध्ययन (28/26-17); (प्रज्ञापना 1/74/1-12); (मूलाचार, 9) में प्राप्त 'रुइ' की सूचि प्रतीत होता है। आवश्यकचूर्णि में वायणा (वाचना), पुच्छणा (पृच्छना), परियट्टण (परिवर्तना) और अणुपेहा (अनुप्रेक्षा) ये चार धर्म ध्यान के आलम्बन कहे गये हैं। ध्यानशतक में अनुप्रेक्षा के स्थान पर अनुचिन्ता का प्रयोग करते हुए धर्म ध्यान के इन चार आलम्बनों का उल्लेख किया है। 107 48 ध्यानशतक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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