Book Title: Devsen Acharya ki Krutiyo ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ अर्थात मैं देवसेनाचार्य अत्यन्त निर्मल शद्ध, चैतन्यगुण से परिपूर्ण, सौधर्मेन्द्र आदि की देवसेनाओं से नमस्कृत, अद्वितीय सुभट, अनन्त गुणों से युक्त सिद्ध परमात्मा को नमस्कार करके आराधनासार ग्रंथ रचूँगा। 'विमलयरगण' इसमें गुरु का नाम भी परोक्ष से अपेक्षित है। 'दर्शनसार' में - पणमिय वीरजिणिदं सुरसेणणमंसियं विमलणाणं। वोच्छं दंसणसारं जहं कहियं पुव्वसूरीहिं।। अर्थात् जिनका ज्ञान निर्मल है और देवसमूह जिन्हें नमस्कार करते हैं उन महावीर भगवान् को नमस्कार करके मैं पूर्वाचार्यों के अनुसार 'दर्शनसार' कहता हूँ। यहाँ 'विमलणाणं' के स्थान पर आचार्य कुछ अन्य भी शब्द जैसे 'केवलणाणं' 'सयलणाणं' इत्यादि ग्रहण कर सकते थे, परन्तु गुरु के प्रति भक्ति प्रदर्शित करते हुए परोक्षरूप से गुरु का स्मरण किया है। यह रचनाकार की विशेषता है कि गुरु का नामोल्लेख भी करते हैं और उससे अन्य प्रयोजनभूत अर्थ भी प्रदर्शित करते हैं। इनके द्वारा दर्शनसार में उल्लेख होने से ये 10वीं शताब्दी के आचार्य निश्चित होते हैं। समय एवं कृति निर्धारण जैनाचार्यों की परम्परा में देवसेन नाम के अनेक आचार्य हुए हैं। उनमें एक भट्टारक देवसेन का वर्णन मिलता है, जो भवणन्दि भट्टारक के शिष्य थे, जिनका समय उनकी समाधि के उपरान्त मूर्तिलेख से 8वीं शताब्दी का जान पड़ता है। उनके बाद एक देवसेनाचार्य धवलाकार आचार्य वीरसेन स्वामी के शिष्य एवं जिनसेन, पद्मसेन आदि के सधर्मा थे, जिनका उल्लेख पं. पन्नालालजी साहित्याचार्य ने महापुराण की प्रस्तावना के प्र. 31 पर किया है। इनका समय ई. सन् 820-870 निश्चित किया है। 'जैनेन्द्र सिद्धांत कोष' भाग-2 में एक देवसेनाचार्य वे हैं, जो आराधनासार, दर्शनसार, तत्त्वसार, भावसंग्रह, नयचक्र, आलापपद्धति आदि ग्रंथों के रचयिता हैं, जिनका समय आचार्य देवसेन ने 'दर्शनसार' ग्रंथ में स्वयं वि. सं. 990 उल्लिखित किया है। इनका समय दसवीं शताब्दी निश्चित हो जाता है। इनके गुरु माथुरसंघी विमलसेन हैं। एक देवसेनाचार्य, जो 'सुलोचनाचरिउ' के रचयिता हैं, जिनका समय ई. सन् 1075-1135 बताया गया है। 10 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 448