Book Title: Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Author(s): Vasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
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नियुक्ति की संख्या एवं उसकी प्राचीनता
समणी कुसुमप्रज्ञा
जैन आगमों के व्याख्या ग्रंथ मुख्यतः चार प्रकार के हैं-नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीका । नियुक्ति प्राचीनतम पद्यबद्ध व्याख्या है । आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यकनियुक्ति (गा० ८८) में नियुक्ति का निरुक्त इस प्रकार किया है-'निज्जुत्ता ते अत्था जं बद्धा तेण होइ निज्जुत्ती' जिसके द्वारा सूत्र के साथ अर्थ का निर्णय होता है, वह नियुक्ति है । निश्चय रूप से सम्यग् अर्थ का निर्णय करना तथा सूत्र में ही परस्पर संबद्ध अर्थ को प्रकट करना नियुक्ति का उद्देश्य है । आचार्य हरिभद्र के अनुसार क्रिया, कारक, भेद और पर्यायवाची शब्दों द्वारा शब्द की व्याख्या करना या नर्थ प्रकट करना निरुक्ति / नियुक्ति है । एक प्रश्न सहज उपस्थित होता है कि जब प्रत्येक सूत्र के साथ अर्थागम संबद्ध है तब फिर अलग से नियुक्ति लिखने की आवश्यकता क्यों पड़ी ? इस प्रश्न के उत्तर में नियुक्तिकार स्वयं कहते हैं 'तह वि य इच्छावेइ विभासिउं सुत्तपरिवाडी' (आवनि ८८) सूत्र में अर्थ नियुक्त होने पर भी सूत्रपद्धति की विविध प्रकार से व्याख्या करके शिष्यों को समझाने के लिए नियुक्ति की रचना की जा रही है । इसी गाथा की व्याख्या करते हुए विशेषावश्यक भाष्यकार कहते हैं कि श्रुतपरिपाटी में ही अर्थ निबद्ध है अतः अर्थाभिव्यक्ति की इच्छा नहीं रखने वाले नियुक्तिकर्ता आचार्य को श्रोताओं पर अनुग्रह करने के लिए वह श्रुतपरिपाटी ही अर्थ-प्राकट्य की ओर प्रेरित करती है । उदाहरण देते हुए भाष्यकार कहते हैं कि जैसे मंख-चित्रकार अपने फलक पर चित्रित चित्रकथा को कहता है तथा शलाका अथवा अंगुलि के साधन से उसकी व्याख्या करता है, उसी प्रकार प्रत्येक अर्थ का सरलता से बोध कराने के लिए सूत्रबद्ध अर्थों को नियुक्तिकार नियुक्ति के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं । जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने 'इच्छावेइ' शब्द का दूसरा अर्थ यह किया है कि मंदबुद्धि शिष्य ही सूत्र का सम्यग् अर्थ नहीं समझने के कारण गुरु को प्रेरित कर सूत्रव्याख्या करने की इच्छा उत्पन्न करवाता है । आचार्य हरिभद्र ने भी यही व्याख्या की है । (आवहाटी १ पृ० ४५) निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि नियुक्ति जैन आगमों के पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या प्रस्तुत करने एवं अर्थ-निर्धारण करने का महत्त्वपूर्ण उपक्रम हैं। .
आवश्यकनियुक्ति में आचार्य भद्रबाहु ने १० नियुक्तियाँ लिखने की प्रतिज्ञा की है। उनका क्रम इस प्रकार है :- १. आवश्यक, २. दशवैकालिक, ३. उत्तराध्ययन, ४. आचारांग, ५.
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