Book Title: Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Author(s): Vasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
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नियुक्ति की संख्या एवं उसकी प्राचीनता
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आचार्य क्रम से वट्टकेर ने अपने ग्रंथ में ले लीं । लेकिन यहाँ विचारणीय प्रश्न यह है कि वट्टकेर ने आवश्यकनियुक्ति या सामायिकनियुक्ति का उल्लेख क्यों किया ? आवश्यकनियुक्ति स्पष्ट रूप से एक
ग्रंथ का वाचक शब्द है ।। ब. मूलाचार में दस स्थितकल्प का वर्णन करने वाली गाथाएँ भी स्पष्ट संकेत करती हैं कि वट्टकेर
समन्वयवादी उदार आचार्य थे। वे श्वेताम्बर ग्रंथों एवं उसकी परम्परा से प्रभावित थे । १७. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ० ३५, ३६ । १८. निशीथ चूर्णि, भाग ४ पृ० १२१ । १९. उशांटीप १३९. १४० : न च केषांचिदिहोदाहरणानां नियुक्तिकालादाक्कालभावितेत्यन्योक्तमाशंकनीयं, स
भगवांश्चतुर्दशपूर्ववित् श्रुतकेवली कालत्रयविषयं वस्तु पश्यत्येवेति कथमन्यकृतत्वाशंकेति । २०. ओनिटी पृ० ३. गुणाधिकस्य वंदनं कर्त्तव्यं, न त्वधमस्य यद् उक्तम् 'गुणाहिए वंदणयं' भद्रबाहुस्वामिनश्चतुर्दश
पूर्वधरत्वात् दशपूर्वधरादीनां च न्यूनत्वात्तत्कि तेषां नमस्कारमसौ करोति ? इति, अत्रोच्यत, गुणाधिका एव ते, अव्यवच्छित्तिगुणाधिक्यात्, अतो न दोष इति । एवं व्याख्याते सत्याह पर:- एकादशांगसूत्रार्थधारकाणां किमर्थं क्रियते ? इति, उच्यते, इह चरणकरणात्मिका ओघनियुक्तिः, एकादशांगसूत्रार्थधारिणश्च चरणकरणवन्त एव, एकादशानामङ्गानां चरणकरणानुयोगत्वात्, उपयोगित्वेनांशेन तेषां नमस्कार इति । साधूनां किमर्थमिति चेत्, ते
तु चरणकरणनिष्पादकाः, तदर्थं चायं सर्वएव प्रयास इति । २१. उशांटी पृ० ८४ । २२. बृहत्कल्पभाष्य भा ६, प्रस्तावना । २३. मुनि हजारीमल स्मृति ग्रंथ, ७१८, ७१९ । २४. दशाश्रुतस्कंध नियुक्तिः एक अध्ययन, भूमिका पृ० १६ ।
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