Book Title: Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Author(s): Vasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 305
________________ २८० Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature विन्दुच्युतक, गूढचतुर्थक, अक्षरच्युतक, अक्षरव्यत्यय, निरोष्ठय आदि का अनुष्टुप् छन्दों में ही प्रदर्शन किया गया है । छठे सर्ग में विविध शब्दों की छटा द्रष्टव्य है । इस काव्य की भाषा माधुर्यपूर्ण है । कवि का भाषा पर असाधारण अधिकार है । वह मनोरम कल्पनाओं को साकार करने में पूर्णतया समर्थ है । कवि ने भाव और भाषा को सजाने के लिये अलंकारों का प्रयोग किया है । शब्दालंकारों में अनुप्रास का प्रयोग अधिक हुआ है । अर्थालंकारों में उपमा, उत्प्रेक्षा, अर्थान्तरन्यासादि का प्रयोग स्वाभाविक रूप से किया गया है । __ अत: महाकाव्य के अनुरूप शैली में रचित यह कृति पार्श्वनाथ के जीवनचरित्र और काव्यकला की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। 000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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