Book Title: Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Author(s): Vasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 306
________________ भीमसेनराजर्षिकथा सं. प्रीति पंचोली प्रस्तावना जैन कथानको में पाँच पाण्डवों के भीमसेन के अलावा बहुत से भीमसेनों के चारित्रों का वर्णन मिलता है । धनेश्वरसूरि कृत शत्रुजयमाहात्म्य में भी भीमसेन का चरित्र आया है और यशोदेवकृत धर्मोपदेश प्रकरण (वि० सं० १३०५) में भी एक अन्य भीमसेन नृप के चरित्र का वर्णन है । यहाँ पर जिस भीमसेन राजर्षि कथा का उल्लेख है वह उपरोक्त भीमसेनचरित्र के होने की सम्भावना है । संस्कृत में स्वतन्त्र रचना के रूप में अज्ञात कर्ताओं की तीन कृतिओं का वर्णन मिलता है । जिनमें निम्न कथानक होने की सम्भावना है। महाभारत के भीमपात्र से यह पात्र भिन्न ही है । इस कथानक में भीम को एक चोर और साहसी दिखाया गया है । प्रतवर्णन :-- "भीमसेन राजर्षि कथानक" प्रत का समय १६वीं सदी है । पत्रांक ४ है । परिमाण २७ x ११.५ से मी. ह । १८२ श्लोक हैं । जिसमें प्रत्येक पृष्ठ पर २१ श्लोक दिए है । भाषा संस्कृत है । जहाँ पर अशुद्ध पाठ है वहाँ पास में शुद्ध पाठ कोष्ठक में दिया है । इस प्रत के अलावा अन्य प्रत नहीं मिलती है । इस कथानक के कुछ श्लोकों में शब्द व्यत्यय भी मिलता है । जैसे कि- 'जाला' शब्द है वहाँ पर 'लाजा' होना चाहिए । कुछ जगह अशुद्ध पाठ हैं-जैसे कि १. 'शिष्यामदादिति' है वहाँ पर 'शिक्षामदादिति' पाठ हो तब ही अर्थसंगति होती है । २. जाजेति के स्थान पर राजेति होना चाहिए । ३. 'तित्थं के स्थान पर तिष्ठन् होना चाहिए । ४. तावरुहय सुसत्वरं के स्थान पर नावमारुह्य सत्वरं होना चाहिए । १. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग ६, डॉ० गुलाबचन्द चौधरी पृ० ३०९ इ० सन् १९७३--पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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