Book Title: Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Author(s): Vasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
View full book text
________________
बीसवीं शताब्दी की जैन संस्कृत रचनाएँ, उनका वैशिष्ट्य और प्रदेय के रूप में ही संभव होती है । चूँकि संस्कृत जैन काव्यों की कथावस्तु अनेक जन्मों से संबंधित होती है अतः चरित्र का विकास अनुप्रस्थ (हारी-जेन्टल) रूप में ही घटित हुआ है । जीवन के विभिन्न पक्ष, विभिन्न जन्मों की विविध घटनाओं में समाहित हैं ।
८. संस्कृत जैन काव्यों में आत्मा की अमरता और जन्म-जन्मान्तरों के संस्कारों की अनिवार्यता दिखलाने के लिए पूर्व जन्म के आख्यानों का संयोजन किया गया है । प्रसंगवश चार्वाक आदि नास्तिक वादों का निरसन कर इनमें आत्मा की अमरता और कर्म संस्कार की विशेषता का विवेचन किया गया है। पूर्व जन्म के सभी आख्यान नायकों के जीवन में कलात्मक शैली में गुम्फित हुए हैं । दार्शनिक सिद्धातों के प्रतिपादन से यत्र-तत्र काव्य रस में न्यूनता आ गई है, पर कवियों ने आख्यानों को सरस बनाकर इस न्यूनता को संभाल भी लिया है ।
९. संस्कृत के जैन कवियों की रचनाएँ श्रमण संस्कृति के प्रमुख्य आदर्श-स्याद्वाद-विचार समन्वय और अहिंसा के पाथेय को अपना सम्बल बनाते हैं । इन काव्यों का अंतिम लक्ष्य प्रायः मोक्ष--प्राप्ति है.। इसलिए आत्मा के उत्थान और चरित्र-विकास की विभिन्न कार्य-भूमिकाएँ स्पष्ट होती हैं ।
१०. व्यक्तियों की पूर्ण-समानता का आदर्श निरूपित करने और मनुष्य-मनुष्य के बीच जातिगत भेद को दूर करने के लिए काव्य के रस-भाव मिश्रित परिप्रेक्ष्य में कर्मकाण्ड, पुरोहितवाद एवं कर्तृत्ववाद का निरसन किया गया है । वैभव के मद में निमग्न अशान्त संसार को वास्तविक शान्ति प्राप्त करने का उपचार परिग्रह-त्याग एवं इच्छा नियंत्रण को निरूपित करके मनोहर काव्य शैली में प्रतिपादन किया गया है ।
११. मानव सन्मार्ग से भटक न जाये, इसलिए मिथ्यात्व का विश्लेषण करके सदाचार परक तत्त्वों का वर्णन करना भी संस्कृत जैन कवियों का अभीष्ट है । यह सब उन्होंने काव्य की मधुर शैली में ही प्रस्तुत किया है।
१२. जैन संस्कृत कवियों की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि वे किसी भी नगर का वर्णन करते समय उनके द्वीप, क्षेत्र एवं देश आदि का निर्देश अवश्य करते हैं ।
१३. कलापक्ष और भावपक्ष में जैन काव्य और अन्य संस्कृत काव्यों के रचना तंत्र में कोई विशेष अंतर नहीं है पर कुछ ऐसी बातें भी हैं जिनके कारण अन्तर माना जा सकता है । काव्य का लक्ष्य केवल मनोरंजन कराना ही नहीं है, प्रत्युत किसी आदर्श को प्राप्त कराना है। जीवन का यह आदर्श ही काव्य का अंतिम लक्ष्य होता है । इस अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति काव्य में जिस प्रक्रिया द्वारा संपन्न होती है । वह प्रक्रिया ही काव्य की "टेकनीक" है। श्री कालिदास, भारवि, माध आदि संस्कृत के कवियों की रचनाओं में चारों ओर से घटना, चरित्र और संवेदन संगठित होते हैं तथा यह संगठन वृत्ताकार पुष्प की तरह पूर्ण विकसित होकर प्रस्फुटित होता है और सम्प्रेषणीयता केन्द्रीयप्रभाव को विकीर्ण कर देती है । इस प्रकार अनुभूति द्वारा रस का संचार होने से काव्यानन्द प्राप्त होता है और अंतिम साध्य रूप जीवन आदर्श तक पाठक पहुँचने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org