Book Title: Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Author(s): Vasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 299
________________ २७४ Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature नारी-सौंदर्य का वर्णन : प्राचीन महाकाव्यों की तरह यहाँ भी कवि ने नारी-सौंदर्य का वर्णन किया हैं । नारीसौंदर्य पुरुष के प्रेमोद्रेक का कारण बनता है, जिससे अनेक घटनायें और कार्य-व्यापार प्रसूत होते हैं । प्रायः पारंपरिक उपमानों का ही सौंदर्यवर्णन में उपयोग होता है । प्रत्येक नारी चंद्रमुखी और पीन-पयोधरों वाली है। उसके नेत्र कमलदल जैसे और चाल मत्त गज की भाँति है, स्त्रीअंगों का फुटकर वर्णन करने के अतिरिक्त कवि ने नख-शिख वर्णन भी किया है । वह एक प्रकार से रूढिबद्ध सौंदर्य-वर्णन है । शरीर के अंग-प्रत्यंग का क्रमिक वर्णन परंपरायुक्त सादृश्यमूलक अप्रस्तुतों के माध्यम से किया जाता है । देवांगनाओं द्वारा तीर्थंकर को जन्म देनेवाली विश्वसेन राजा की रानी सगर्भा ब्रह्मदत्ता के सौंदर्य और अंग-प्रत्यंग का वर्णन इस तरह हुआ है यन्त्रमस्यति सतीमिमां वृषात् कियच्च सदृशं मृगीदृशः । संहतिः स्वयमियं हि तावतामेकशस्तव पदं हि ये गुणाः ॥६८॥ नैशमेव नयनाभिरामया बध्यते नवसुधारुचे रुचा । विद्ययेव निरवद्यवृत्तया चेतसं च सुदृशा जगत्तमः ॥६९।। सुभ्रुवो नु वदनेन बंधुना पद्मसारविजयी निशाकरः । संविभागविधिनेव यत्तयोः कांतिसंपदुभयोः प्रवर्तते ॥७०।। मुख्यसौरभसमीरसंगतस्पंदिताधरसरागपल्लवा । निर्मलास्मितसुधानवोद्गमा स्पर्द्धते मधुवनश्रिया वधूः ॥७१॥ नयनों को मनोहर लगनेवाली चंद्रमा की चांदनी से तो केवल रात्रि का ही अंधकार नष्ट होता है परंतु इस महारानी के दर्शन तो जिस प्रकार निर्दोष चारित्र से भूषित विद्या से चित्त और संसार--सब जगह का अंधकार नष्ट हो जाता है उसी प्रकार सब अंधकार नष्ट हो गया ॥६८६९॥ सुंदर भ्रुकुटीवाली महारानी के मुख के साथ साथ ही चंद्रमाने कमलवन को जीता था इसीलिये मानों इन (चंद्रमा और इस रानी के मुख) की कांतिरूपी सम्पत्ति बराबर है । भावार्थ जिस प्रकार चंद्रमा की कांति है उसी प्रकार इस महारानी के मुख की भी है ॥७०॥ इस रानी के लाल अधर पल्लव, मुख की सुगंधित पवन से काँप रहे हैं । निर्मल मुस्कराहट रूपी सुधा का प्रसव कर रहे हैं इसलिए मधुवन की लक्ष्मी के साथ यह स्पर्धा ही मानो कर रही है ऐसा मालूम पड़ता है ॥७१॥ इसके बाद रानी के स्तन, उरुयुगल, नख आदि का वर्णन क्रमशः मिलता है, जो परंपरागत प्रकृति वर्णन : महाकाव्य में प्रकृतिवर्णन के लिये भी ज़्यादा अवकाश रहता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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