Book Title: Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Author(s): Vasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 263
________________ २३८ Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature अर्थप्रकृतिर्या :- बकासुर-वध नाटक का मुख्य प्रयोजन है । भ्रमण करते हुए भीम की भू-भाग के रक्ताप्लावित होने का कारण जानने की इच्छा 'बीज' है ।१२ भीम द्वारा ब्राह्मण-कुमार की रक्षा का संकल्प किए जाने पर द्रौपदी द्वारा उसे उस साहसिक कार्य को न करने के आग्रह से कथा समाप्त होती प्रतीत होती है, लेकिन भीम द्वारा कर्तव्य-पालन के लिए द्रौपदी को समझा कर अपने संकल्प पर दृढ़ रहने से यह अपने क्रम से पुनः जुड जाती है । नाटक में इस स्थल को 'बिन्दु' कहा जाता है ।१३ ब्राह्मण नवयुवक से सम्बन्धित कथांश को 'पताका' कहा जा सकता है । इससे कथावस्तु को अग्रसर होने में पर्याप्त सहायता मिली है । बक राक्षस का वध नाटक 'कार्य' है ।१४ अवस्थाएँ :- देवालय के द्वारपाल से बिखरा हुआ मांस, मज्जा तथा हड्डियों का कारण पूछने के लिए भीम का गमन उसकी 'आरम्भावस्था का' द्योतक है ।१५ ब्राह्मण नवयुवक को निर्भय प्रदान कर स्वयं राक्षसराज की प्रतीक्षा करना 'यत्न' है ।१६ बकराक्षस का वध करने में सफलता 'फलागम' नामक अवस्था है ।१० सन्धियाँ :- नाटक के प्रारम्भ में भीम द्वारा द्रौपदी को वनश्री के दर्शन कराने की इच्छा१८ से आरम्भ हो कर साहसिक पुरुष द्वारा बकासुर के आगमन की सूचना तक 'मुखसन्धि' लक्षित होती है ।१९ राक्षसराज के आगमन से लेकर राक्षसों द्वारा भीम के कर्कश शरीर को काटने में असमर्थ रहने तक 'प्रतिमुखसन्धि' है । युधिष्ठिर आदि अन्य चारों पाण्डु-पुत्रों के प्रवेश से निर्वहण सन्धि आरम्भ हो जाती है । तथा नाटक के अन्त तक लक्षित होती है । अर्थोपक्षेपक एवं रङ्गमञ्चीय निर्देश :- प्रस्तुत रूपक में केवल 'चूलिका' नामक अर्थोपक्षेपक का विधान किया गया है । करुण क्रन्दन करती हुई वृद्धा का प्रवेश२९, क्षुधापीडित बकासुर का आगमन२२ तथा बकवध की सूचना२३ नेपथ्य से ही दी गई है । रूपक में अन्यत्र भी 'चूलिका' के उदाहरण उपलब्ध होते हैं ।२४ स्वगत-भाषण केवल एक ही बार प्रस्तावना में प्रयुक्त हुआ है ।२५ शेष कथा सर्वश्राव्य है । अभिनय निर्देश :- इस व्यायोग में चारों प्रकार के अभिनय-सङ्केत प्राप्त होते हैं । उदाहरणार्थ-निष्कान्तः, उभौ परिकामतः, कर्णौ पिधाय, पुरुषस्य पादौ शिरसि निधाय, गन्धमाघ्राय, सर्वेवलेन भीममुत्पाट्य मन्द-मन्दं निष्क्रान्ताः-इत्यादि 'आङ्किक' अभिनय सङ्केत के दृष्टान्त हैं । ___ उच्चैः स्वरम्, नेपथ्ये कलकल:, सकरुणस्वरम्-आदि 'वाचिक' अभिनय के उदाहरण साक्षेपम्, सम्भ्रमम्, सरोषम्, विहस्य, द्रौपदी मन्दं मन्दं रोदिति, सभयम्, मूर्छितः-आदि 'सात्त्विक' अभिनय सङ्केत हैं । ततः प्रविशति रक्तचन्दनानुलिप्तसर्वाङ्गः परिहितधौतधोवसनः कण्डपीठप्रलम्बितरक्तकरवीरमालः प्रलम्बमानकेशो मन्दप्रचारी दीनवदनो नवयौवनः पुरुषः, वृद्धा, सर्वाङ्गीणाभरणा वधूश्च ।२६ भीमः गदां सविधे निधाय शिलातलमधिशेते ।२७ आदि 'आहार्य' अभिनय के उदाहरण हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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