Book Title: Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Author(s): Vasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
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Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
वध की कथा इसका वर्ण्य विषय है ।
कथावस्तु :- द्रौपदी के वन्यवेष को देखकर भीम अत्यन्त व्यथित है । पत्नी के मनोविनोदार्थ उसे वनश्रीदर्शन कराने के लिए वह उसके साथ वन में जाता है । वहाँ एक स्थल पर उसने मांस, मज्जा तथा हड्डियों का ढेर दिखाई देता है । उसका कारण जानने की इच्छा से भीम पास ही स्थित एक भवन के द्वारपाल के पास जाता है । साहसिक नामक वह परिचारक उस भवन को तीनों लोकों में विख्यात बक नामक राक्षस का भवन बताता है । वह उन्हें एक करुणगाथा सुनाता है जिसके अनुसार एक नगरवासी प्रतिदिन उस राक्षस के आहारार्थ एक जन्तु के साथ उस वध्यस्थल पर उपस्थित होता है । उपहारपुरुष और राक्षसराज के आने का समय हो जाने के कारण साहसिक भीम को अन्यत्र जाने का परामर्श देकर स्वयं भी उस स्थान से चला जाता है । तभी उपहारपुरुष का करुण क्रन्दन सुनाई पड़ता है । भीम तथा द्रौपदी उस हृदयविदारक दृश्य को देखने के लिए छिप जाते हैं ।
वध्यवेष धारण किए हुए एक नवयुवक अपनी वधू तथा वृद्धामाता के साथ वहाँ आता है । नवयुवक अपने को मरणासन्न समझकर विभिन्न प्रकार से विलाप करते हुए अपनी माँ तथा पत्नी से लौट जाने का अनुरोध करता है । परन्तु उसके बिना अपने जीवन को निरस्सार मानकर वे दोनों भी वहीं अपने जीवन का अन्त करने की इच्छा व्यक्त करती हैं । इस दृश्य से करुणाभिभूत भीम अपनी कुलमर्यादा तथा क्षात्रधर्म के पालनार्थ उस युवक के जीवन की रक्षा करने का सङ्कल्प करता है । राक्षस के बल से भयभीत द्रौपदी भीम से पुनः अन्यत्र र आग्रह करती है, परन्तु अपने भुजबल से अभिज्ञ भीम उस असहाय युवक के सम्मुख उपस्थित होकर उसे आश्वस्त करता है । भीषण आकार वाले भीम को राक्षस समझकर वह युवक मूर्छित हो जाता है । तब द्रौपदी उन्हें भीम का परिचय देती है।
राक्षस के आगमन की सूचना मिलने के कारण भीम और द्रौपदी के अतिरिक्त सब वहाँ से चले जाते हैं । भीम के परामर्श से द्रौपदी भी रोती हुई वृक्ष के पीछे छिप जाती है । विशालकाय भीम को देखकर बक अत्यन्त प्रसन्न होता है । तभी अन्य मनुष्य की गन्ध को पहचानने वाले सूकर तथा व्याघ्र नामक राक्षस द्रौपदी को ढूंढ निकालते हैं और अपने स्वामी से उस कोमलाङ्गी के भक्षण का अनुरोध करते हैं । परन्तु बक प्रतिदिन एक मनुष्य को खाने के अपने वचन के अनुसार उसे छोड़ देता है । तब भीम को खाने के लिए उद्यत राक्षस उसके कर्कश शरीर को काटने में असमर्थ रहते हैं । तत्पश्चात् अन्य राक्षसों की सहायता से वे सभ भीम को उठाकर पर्वत पर ले जाते हैं ।
निराश द्रौपदी महाराज युधिष्ठिर आदि को पुकारती हुई अपने कण्ठ में लतापाश बाँधकर प्राणों का अन्त करने का यत्न करती है । तभी अर्जुन, नकुल तथा सहदेव के साथ युधिष्ठि वहाँ आते हैं । वे द्रौपदी को इस अनर्थ से रोकते हुए बलशाली भीम के सामर्थ्य के प्रति पूर्ण विश्वास व्यक्त करते हैं । अर्जुन भीमसेन के पास जाने के लिए उद्यत ही होता है कि बकवध की सूचना मिल जाती है । बकहन्ता भीम भी वहाँ आ जाता है और युधिष्ठिर द्वारा आग्रह करने पर उन्हें
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