Book Title: Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Author(s): Vasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad

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Page 288
________________ वाग्भट द्वितीय का गुणविचार २६३ वाग्भट द्वितीय ने मम्मट का नामनिर्देश तो नहीं किया है फिर भी यह सुस्पष्ट है कि उन्होंने गुणविचार में मम्मट द्वारा स्वीकृत ध्वनिवादी विचारसरणि का ही अनुमोदन किया है । गुणविचार के उपलक्ष्य में ही वाग्भट द्वितीय ने रीतिविचार दिया है और गुणों के प्रयोजक वर्ण कौन से हैं यह निर्दिष्ट किया है । तदनुसार, वैदर्भीरीति को उन्होंने माधुर्यगुणयुक्त कहा है । उसमें मुख्यतया कोमल बन्ध, समास का अभाव, ट वर्गरहित अन्य वर्गों के वर्ण, उनके पाँचवें वर्ण सहित प्रयुक्त होते हैं । यहाँ ह्रस्व वर्ण के साथ आते 'र' एवं 'ण' वर्ण भी प्रयोगार्ह माने गये हैं । इसी तरह ओजोगुणयुक्त रीति को गौडीया कहते हैं । वे कहते हैं कि, उस रीति में उग्रता, समास की दीर्घता, संयुक्त वर्ण, अपने अपने वर्ग के प्रथम और तृतीय वर्ण के साथ आये हुए द्वितीय और चतर्थ वर्ण तथा 'र'कार का प्रयोग करना चाहिए ।४२ तत्पश्चात् पांचाली रीति को उन्होंने प्रसादगुणयुक्त माना है और उसमें बंध की सुश्लिष्टता तथा प्रसिद्ध पदों का प्रयोग किया जाता है ।४३ आचार्य हेमचन्द्र ने गुणव्यंजक वर्गों के निरूपण द्वारा वृत्तियों और रीतियों का निरूपण गतार्थ माना है यही बात प्रकारान्तर से वाग्भट में भी सिद्ध होती हुई दृष्टिगोचर होती है । हेमचन्द्र ने गुणव्यंजक वर्णों से गतार्थ रीतितत्त्व का निर्देश भी जरूरी नहीं माना है, जब कि, वाग्भट वैदर्भी आदि रीतियाँ का निर्देश तो करते हैं किन्तु उसका निरूपण उन्होंने गुणों के व्यंजक वर्ण के संदर्भ में ही किया है । ___ अन्त में वृत्ति में उन्होंने कहा है कि, किसीने तो इस वैदर्भी आदि को ही अनुक्रम से उपनागरिका परुषा एवं कोमला यह तीन वृत्तियाँ कहा है ।४५ यहाँ स्पष्टतः मम्मट का निर्देश अभिप्रेत है । वाग्भट ने यहाँ नामनिर्देश किये बिना ही मम्मट'६ में से उद्धरण दिया है । ___ यह समग्र निरूपण परंपराप्राप्त ही है, फिर भी दस काव्यगुणों का स्वीकार, माधुर्यादि तीन गुणों के अपने अभिमत लक्षण तथा रीतियाँ को स्वतंत्र महत्त्व न देते हुए भी उसका निरूपण इन सब बातों से यह प्रतीत होता है कि, वाग्भट में एक ओर दण्डी आदि पूर्वाचार्यों में प्राप्त बातों के प्रति आदर है तो दूसरी ओर ध्वनिवादी परंपरा का दृढ़ अनुसरण भी है । पादटीप :१. का० शा० (वाग्भट द्वितीय)-अध्याय-१, पृ० १४ । २. का० प्र० (मम्मट) १.४. A, पृ० १३. तददोषौ शब्दार्थों सगुणावनलङ्कृती पुनः क्वापि । ३. का. शा. (हेमचन्द्र)-१.११, पृ० ३३- अदोषौ सगुणौ सालङ्कारौ च शब्दार्थों काव्यम् । ४. का० शा० (वाग्भट द्वितीय) अध्याय-२, पृ० २९ । । ५. का० शा० (वाग्भट द्वितीय) अध्याय-२, पृ० २९ । ६. का० सू० वृ० (वामन)- ३. १. २५ एवं उस पर वृत्ति औज्ज्वल्यं कान्तिः । बन्धस्यौज्ज्वलत्वं नाम यदसौ कान्तिरिति. . . . । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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