Book Title: Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Author(s): Vasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
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नियुक्ति की संख्या एवं उसकी प्राचीनता
नहीं है ।२३
___ नंदी सू० के हारिभद्रीय टिप्पणक (पृ० १६१) में उल्लेख है कि भद्रबाहु स्वामी आदि स्थविरों ने आवश्यकनियुक्ति आदि श्रुतग्रंथों की रचना की । इस कथन से ऐसा ध्वनित होता है कि केवल भद्रबाहु ने ही नियुक्ति की रचना नहीं की अन्य आचार्यों की भी इसकी रचना में सहभागिता रही है । नियुक्ति-साहित्य में आर्य वज्र, पादलिप्त, कालकाचार्य, सिंहाचार्य, सोमदेव, फल्गुरक्षित आदि का वर्णन बाद में जोड़ा गया है । इसके संवर्धन में द्वितीय भद्रबाहु के अतिरिक्त अन्य आचार्यों का योग भी संभावित है ।
नैमित्तिक भद्रबाहु नियुक्तियों के कर्ता नहीं है इस पक्ष में डॉ० सागरमलजी जैन का यह तर्क भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है –'यदि नियुक्तियाँ नैमित्तिक भद्रबाहु की (विक्रम की छठी सदी उत्तरार्ध) की रचनाएँ होती तो उनमें विक्रम की तीसरी सदी से लेकर छठीं सदी के बीच के किसी न किसी आचार्य एवं घटना का उल्लेख भी, चाहे संकेत रूप में ही क्यों न हो, अवश्य होता । अन्य कुछ भी नहीं तो माथरी एवं वलभी वाचना के उल्लेख अवश्य होते. क्योंकि नैमित्तिक भद्रबाहु उनके बाद ही हुए है । वे वलभी वाचना के आयोजक देवद्धिगणि के तो कनिष्ठ समकालिक हैं, अतः यदि वे नियुक्तिकर्ता होते तो वलभी वाचना का उल्लेख नियुक्तियों में अवश्य करते ।२४
आचारांगनियुक्ति गा० २२३, २२४ में गुणश्रेणी विकास की दस अवस्थाओं का वर्णन है । आचारांगनियुक्ति से ही यह प्रकरण तत्त्वार्थसूत्र (९/४७) में संक्रांत हुआ है, गुणश्रेणी विकास की दस अवस्थाओं का वर्णन भी नियुक्ति की प्राचीनता को सिद्ध करता है क्योंकि विक्रम की तीसरी शताब्दी तक गुणस्थानों का व्यवस्थित विकास हो गया था । किन्तु नियुक्ति साहित्य में १४ गुणस्थानों का कोई उल्लेख नहीं मिलता । डॉ० सागरमलजी जैन का अभिमत है कि आचारांग में गुणश्रेणी विकास संबंधी ये दोनों गाथाएँ पूर्वसाहित्य या कर्म साहित्य के किसी प्राचीनग्रंथ से अवतरित प्रतीत होती हैं । आचारांगनियुक्ति से ये गाथाएँ षखंडागमकार ने ली हैं क्योंकि षट्खंडागम यापनीय कृति है । यापनीयों में नियुक्तियों के अध्ययन की परम्परा थी जैसे मूलाचार आदि में आवश्यक नियुक्ति की अनेक गाथाएँ हैं ।
भाषा-शैली की दृष्टि से भी नियुक्ति की गाथाएँ प्राचीन सिद्ध होती हैं । नियुक्ति साहित्य में निक्षेप पद्धति का विशेष रूप से उपयोग हआ है. यह व्याख्या की प्राचीन पद्धति रही है इसे छठी शताब्दी की व्याख्या शैली का अंग नहीं माना जा सकता ।
निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है कि वीर-निर्वाण की दूसरी शताब्दी तक मियुक्ति साहित्य की रचना प्रारम्भ हो गयी थी । उसका विस्तार बाद के आचार्यों द्वारा भी हुआ, जिसमें भद्रबाहु द्वितीय का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है ।
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