Book Title: Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Author(s): Vasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
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नियुक्ति की संख्या एवं उसकी प्राचीनता
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इन उद्धरणों को प्रस्तुत करने का तात्पर्य यह नहीं है कि भद्रबाहु प्रथम ने ही नियुक्तियाँ लिखीं । इस संदर्भ में हमारा स्पष्ट अभिमत है कि भद्रबाहु प्रथम द्वारा लिखित संक्षिप्त नियुक्तियों को व्यवस्थित रूप देने तथा कुछेक प्रासंगिक गाथाओं की पद्यबद्ध व्याख्या करने का सारा श्रेय भद्रबाहु द्वितीय को ही है । इस तथ्य की पुष्टि में कुछ हेतु प्रस्तुत हैं :
१. उत्तराध्ययन नियुक्ति में बावीस परीषहों की कथा का संकेत एवं व्याख्या मिलती है । पंडित दलसुखभाई के अनुसार ८८ एवं ८९-ये दो गाथाएँ ही मूल नियुक्ति की हैं क्योंकि इनमें २२ परिषहों की कथा का संकेत है । ९०-१४१ तक की ५१ गाथाओं का विस्तार बाद में किया गया प्रतीत होता है क्योंकि नियुक्तिकार किसी भी कथा या विषय का इतना विस्तार नहीं करते । टीकाकार शान्त्याचार्य ने अनेक स्थलों पर इन गाथाओं के लिए नियुक्तिकृद् का उल्लेख किया है । जैसे इदानीं नियुक्तिकार एव...क्षुत्परीषहोदाहरणमाह टीकाकार के इस उद्धरण से स्पष्ट है कि शान्त्याचार्य के समय तक ये गाथाएँ नियुक्ति के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं । यहाँ यह स्पष्ट संभावना की जा सकती है कि भद्रबाहु द्वितीय ने इन कथा-संकेतों के आधार पर शिष्यों की स्पष्टता के लिए इन गाथाओं की बाद में रचना की हो ।
२. निशीथ चूर्णि में अनेक स्थलों पर यह उल्लेख मिलता है कि 'इमा भद्दबाहुसामिकता वक्खाणगाहा' (निभा २९२) निशीथभाष्य में २०५ की गाथा द्वारगाथा है जो संभवत: प्रथम भद्रबाहु द्वारा रचित है । लेकिन इसकी व्याख्या द्वितीय भद्रबाहु ने की है । गा० २०७ की उत्थानिका में चूर्णिकार कहते हैं-'सागणियणिक्खित्तदाराणं दोण्ह वि भद्दबाहुसामिकता प्रायश्चित्तव्याख्यानगाथा २०८वीं गाथा की उत्थानिका में भी 'भद्दबाहुसामिकता वक्खाणगाहा' का उल्लेख है । यहाँ यह संभावना की जा सकती है कि प्रथम भद्रबाहु की द्वारगाथा पर द्वितीय भद्रबाहु ने व्याख्यानगाथा लिखी हो ।
३. निशीथ भाष्य ५४५ की उत्थानिका का उल्लेख भी इस दिशा में सोचने के लिए प्रेरित करता है । वहाँ स्पष्ट उल्लेख है कि सिद्धसेणायरिएण जा जयणा भणिया तं चेव संखेवओ भहबाहू भण्णति इस उद्धरण से स्पष्ट है कि यहाँ द्वितीय भद्रबाहु की ओर संकेत है । प्रथम भद्रबाहु तो सिद्धसेन की रचना की व्याख्या नहीं कर सकते क्योंकि वे उनसे बहुत प्राचीन हैं । बृहत्कल्पभाष्य में भी गा० २६११ के पूर्व टीकाकार उल्लेख करते हैं-'या भाष्यकृता सविस्तरं यतना प्रोक्ता तामेव नियुक्तिकृदेकगाथया संगृह्याह' यह उद्धरण विद्वानों के चिन्तन या ऊहापोह के लिए प्रस्तुत है । इसके आधार पर यह स्पष्ट संभावना की जा सकती है कि आचार्य सिद्धसेन द्वितीय भद्रबाहु से पूर्व पाँचवीं शती के उत्तरार्ध में हो गए थे । द्वितीय भद्रबाहु के समक्ष नियुक्तियाँ तथा उन पर लिखे गये कुछ भाष्य भी थे।
४. बृहत्कल्प और निशीथ भाष्य में अनेक स्थानों पर 'पुरातणी गाहा' या 'चिरंतणा गाह्म' का संकेत मिलता है । ये गाथाएँ भद्रबाहु प्रथम की प्रतीत होती हैं । निशीथ में एक स्थान पर उल्ख मिलता है कि एसा चिरंतणा गाहा, एयाए चिरंतणगाहाए इमा भद्दबाहुसामिकता वक्खाणगाहा इस उद्धरण से स्पष्ट है कि भद्रबाहु द्वितीय से पूर्व उनके सामने संक्षेप में समस्त
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