Book Title: Contribution of Jainas to Sanskrit and Prakrit Literature
Author(s): Vasantkumar Bhatt, Jitendra B Shah, Dinanath Sharma
Publisher: Kasturbhai Lalbhai Smarak Nidhi Ahmedabad
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नियुक्ति की संख्या एवं उसकी प्राचीनता
१५९ लिखे गये । अतः नियुक्ति और अन्य व्याख्या साहित्य के बीच में समय का पर्याप्त अंतराल होना चाहिए । क्योंकि उस समय आज की भाँति प्रकाशन एवं प्रचार-प्रसार की सुविधा नहीं थी । मौखिक परम्परा या हस्तप्रतियों के आधार पर किसी भी ग्रंथ का ज्ञान किया या कराया जाता था । ऐसी स्थिति में हस्तलिखित किसी भी ग्रंथ को प्रसिद्ध होने में कम से कम एक शताब्दी का समय लग ही जाता है । भाष्य का रचनाकाल चौथी-पाँचवीं शताब्दी माना जाता था । जब भाष्य का रचनाकाल विक्रम की चौथी शताब्दी का है फिर नियुक्तियों का काल छठी शताब्दी कैसे. हो सकता है क्योंकि नियुक्तियाँ भाष्य से पूर्व की रचना है । अतः कहा जा सकता है कि नियुक्ति का समय वीर-निर्वाण की दूसरी शताब्दी, भाष्य का समय विक्रम की चौथी-पाँचवीं, चूर्णि का सातवीं तथा टीका का आठवीं से तेरहवीं शताब्दी का समय युक्तिसंगत प्रतीत होता है । आचार्य सिद्धसेन क्षमाश्रमण का समय पाँचवीं शताब्दी के आसपास माना जाता है । जब कि भद्रबाहु द्वितीय का समय छठी शताब्दी है ।
३. निशीथ चूर्णि८ में निर्दिष्ट 'जे भणिया भद्दबाहुकयाए गाहाए सच्छंदगमणाइया तिण्णि पगारा ते चेव सिद्धसेणखमासमणेहिं फुडतरा करेंतेहिं इमे भणिता' उल्लेख से स्पष्ट है कि भद्रबाहु कृत गाथा पर सिद्धसेन क्षमाश्रमण व्याख्या कर रहे हैं । यदि भद्रबाहु द्वितीय को मूल नियुक्तिकार माना जाए तो फिर यह अहं प्रश्न खड़ा होता है कि भद्रबाहु द्वितीय की रचना पर उनसे पूर्ववर्ती आचार्य सिद्धसेन क्षमाश्रमण व्याख्या या भाष्य कैसे लिख सकते हैं ?
४. भद्रबाहु द्वितीय ने नियुक्ति की रचना की, ऐसा उल्लेख स्पष्टतः कहीं नहीं मिलता किन्तु चतुर्दश पूर्वधर भद्रबाहु का नियुक्तिकार के रूप में अनेक स्थानों पर उल्लेख मिलता है । मलधारी हेमचन्द्र, आचार्य मल्लवादी, आचार्य मलयगिरि, आचार्य शीलांक और क्षेमचन्द्रसूरि ने चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहु का नियुक्तिकार के रूप में उल्लेख किया है । दर्शन परीषह के संदर्भ में नियुक्तिकार ने आषाढभूति का उदाहरण दिया है । टीकाकार शान्त्याचार्य ने स्पष्ट उल्लेख किया है कि इन २२ परीषहों के उदाहरणों में कुछ उदाहरण नियुक्तिकार के पश्चाद्भावी हैं । किन्तु उनके आधार पर यह आशंका नहीं करनी चाहिए कि ये किसी अन्य व्यक्ति द्वारा रचित है । इसका हेतु देते हुए शान्त्याचार्य कहते हैं कि आचार्य भद्रबाहु चौदह पूर्ववित् और श्रुतकेवली थे अतः वे त्रैकालिक विषयों के ज्ञाता थे ।२९
५. विंटरनित्स के अनुसार दशाश्रुतस्कंध के अतिरिक्त सभी नियुक्तियाँ चतुर्दशपूर्वी प्रथम भद्रबाहु द्वारा लिखी गयीं । इसका कारण बताते हुए वे कहते हैं कि इसकी प्रथम गाथा में भद्रबाहु प्रथम को वंदना की गयी है । भद्रबाहु द्वितीय को नियुक्तिकार मानने वालों का भी सबसे प्रबल प्रमाण यही है कि दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति की प्रथम गाथा वंदामि भद्रबाहुं. में भद्रबाहु प्रथम को वंदना की गयी है । यदि वे स्वयं नियुक्तिकार होते तो स्वयं को वंदना कैसे करते ? इस प्रश्न के समाधान में यदि आगम-साहित्य को देखें तो ज्ञात होता है कि मंगलाचरण की परम्परा बहुत बाद की है यदि कहीं है तो वह भी लिपिकर्ताओं द्वारा लिखा गया प्रतीत होता है ।
दूसरी बात आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यकनियुक्ति में पंचज्ञान के माध्यम से मंगलाचरण
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