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मोह की ज्याला ज्ञानादि गुणों को भस्म कर देती है।
सम्मेद शिखर जी, चंपापुर, मंदारगिर जी, गुणावा, पावापुर, राजगिर, पटना, पारा, गया आदि स्थानों में धर्माचरण करता हुआ संघ बनारस, अयोध्या, इलाहाबाद होकर चातुर्मास कटनी में
किया।
मुनि दीक्षा ___ अगला चातुर्मास ललितपुर हुआ वहा से विहारकर सोनागिर जी अगहन मुदी १२ वि० सं० १९८६ में श्री १०८ आचार्य शान्ति सागर जी ने श्री १०५ ऐलक चन्द्र सागर जी पाय सागर जो ऐलक कुथ सागर जी को मुनि दीक्षा दी । अव संघ का परम गौरव बढा लश्कर, मोरेना, धौलपुर, आगरा, फिरोजाबाद, मरसलगज, वटेश्वर, कपिला, एटा, अवागढ, जलेसर, वरमाना, अलीगढ मथरा चातुर्मास वहा से अलवर, तिजारा, गुड़गावा रोहतक वगैरह विहार कर देहली चातुर्मास दरियागंज में हुआ। दिल्ली चातुर्मास : प्रतिबन्ध को हल-चल
वहां पर सरकार व अन्य लोगो ने हल-चन पैदा करदी। साधुओं पर प्रतिवध लगा दिया। साधु वर्ग को १-२ माह मालूम नही होने पाया। जव. चन्द्र मागर जी को मालूम हुआ तो चर्या के लिये महाराज श्री लाल मदिर चांदनी चौक होकर पहाडी पहचे और प्रतिबंध को हलचल दूर कर दी। जव नर पुगवों काउपदेश धारावाही मना तो जनता यानी आर्य समाज की बोलती वद हो गई। और उधर से विहार कर महावीर जी जयपुर से आगे श्री १०८ आचार्य शान्ति सागर जी ने स्वतन्त्र विहार किया। उसका कारण लोहड़ साजन बड़ साजन था। मारवाड के उद्धारक
तब महाराज श्री ने मारवाड़ को डूबते हुये उवारा और धारा प्रवाही सर्व जगह मालवा बड़नगर गिरनार वगैरह यात्रा उपदेश कर तमाम जैन धर्मावलम्बी बन्धुआ को शूद्र जल के त्याग के साथ २ व्रती बनाया। आपका अध्ययन बराबर चलता था। व्याकरण ज्योतिप साहित्य धर्म शास्त्र पहिले क्ष ज्ञान सागर जी (आ० सुधर्म सागर जी) वाद में व०प० गौरीलाल जी सिद्धात शास्त्री व्याकरण पढाते थे। उस समय महाराज के ओजस्वी उपदेश सुनकर विरोधी दल सामने नहीं आता था । आपने मारवाड को दि० जैन धर्म में दृढ कर स्थितिकरण अग व वान्सल्य अंग का कार्य महान किया जो साक्षात मुक्ति का कारण है। आपने अनेकों भव्यों को व्रती मुनी आर्यिका क्ष ल्लिका क्ष ल्लक ऐलक बनाकर जैन धर्म की प्रभावना की । वचन के पक्के
आप वचन के बड़े ही पायवंद थे जो कह दिया सो करके दिखा दिया। आपने अपनी वचन प्रमाणिकताके कारण अपने संघ की भी परवाह नहीं की। जब आप सघ सहित मुक्तागिरजी पर थे उस समय सेठ चादमल पन्नालाल जी पाटनी ने महाराज श्री से प्रार्थना की कि बड़वानी सिद्ध क्षेत्र