Book Title: Chandrasagar Smruti Granth
Author(s): Suparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
Publisher: Mishrimal Bakliwal

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Page 21
________________ || उपसर्ग विजेता के चरणारविन्द में || नाचा. च पूज्य आचार्य श्री १०८ विमल सागर जी महाराज की -=-भक्तिपूर्ण श्रद्धाञ्जलि-= जैन साधु हो तो ऐसा हो ! परम पूज्य प्रात. स्मरणीय आचार्य कल्प श्री १०८ चन्द्रसागर जी महाराज परम तपस्वी उपसर्ग विजेता आगम वक्ता अनुशासन शोल महा पुरुष थे। महाराज उन आदर्ग तपस्वियों में थे-जिन्होने साधु पद के उच्च आदर्श को दुनिया के सामने उपस्थित किया। जैन साधू हो तो ऐसा हो इस प्रकार की ध्वनि प्रत्येक आवाल वृद्धो के मुख से सुनाई दे रही थी। आपको विदत्ता श्लाघनीय थी। किसी भी तात्विक विषय पर विचार करने बैठते अथवा अपने उपदेश में किसी तत्व का विवेचन करते तो तलस्पर्शी विषय रहता था। अनेक विरोधी दूर से गीदड के समान हू हू करते समक्ष आते ही-शात हो जाते। पत्नी का देहावसान : त्याग मार्ग प्रारम्भ आपने महाराष्ट्रीय नाद गाव मे खडेलवाल जातीय पहाडया गोत्रोत्पन्न नथमल भी की धर्म पत्नी सीता बाई की कुक्षि को अपने जन्म से पवित्र किया । २२ वर्ष की अवस्था मे पत्नी का वियोग हो जाने से विरक्त होकर उसी दिन परम पवित्र ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया । आपकी संसार से विरक्ति वढती गई। एलक पन्नालाल जी को सगति ने उस विरक्ति मे पानी सीचाजिससे आपके हृदय मे अटूट वैराग्य के अकुर फूटे । उन अकुरो को पल्लवित करने के लिये आप ने चारित्र चक्रवर्ती शाति सागर महाराज की संगति की । आपके हृदय मे उनके प्रति अपूर्व भक्ति थी। आपने चारित्र चक्रवर्ती महाराज श्री से सप्तम प्रतिमा के व्रत लिये । आपको ७० हीरालाल जी (वीरसागर जी) का सयोग मिला-दोनो ब्रह्मचारियो ने चाद मूर्य के समान महाराष्ट्र मे धर्म का झडा फहरा दिया। क्षुल्लक दीक्षा वीर निर्वाण सं० २४५० में दोनो ब्रह्मचारी जी ने क्ष ल्लक दीक्षा फागुन शुक्ला ७ को धारण की। आपका नामकरण खुशाल चन्द जी (क्ष चन्द्र सागर जी) ७० हीरा लाल जी (क्ष ० वीर सागर जी) हुआ। आ० गाति सागर जो के पास समडोली मे चातुर्मान किया वहां पर क्षचन्द्र सागर जी क्ष०पाय सानर जी ने ऐलक दीक्षा ली । क्ष वीर नागर जी ने, क्ष नेम सागर जी ने मुनि दीक्षा आश्विन शुक्ला ११ को ली। वहा मे विहार कर मघ के माय [५]

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