Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भट्टारक रगीति एवं कुमचन्द्र : व्यक्तित्व कृतित्व
३. कृपण जगायन हार-इस लघु काव्य में क्षयंकरी एवं लोभमत दो कृपपों की कथा है जिन्हें जिनेन्द्र भक्ति के कारण अपने पूर्व भव में किये हुए दुष्कर्मों से छु-कार प्राप्त हो गया था। इसकी एक प्रति अलीगंज के शांतिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है । ऋवि ने कहा है कि प्रतिमा पूजन पुण्य का निमित्त कारण बनता है उससे प्रारमा ज्ञानरूप में परिणभित होती है यही नहीं उसके दर्शनमात्र से ही क्रोध मान माया लोभ कपाय नष्ट हो जाती हैं। १
४. चौरासी जाति जयमाला—समें चौरासी जातियों का वर्णन दिया हमा है । इसकी गाण्डुलिपि भट्टारकीय शास्त्र भण्डार अजमेर के गुटका संख्या १०१ में संग्रहीत है । जयमाला का प्रारम्भिक भाग निम्न प्रकार है
जैन धर्म अपन क्रिया दय! धर्म संयुक्त इश्वाक के फूल बंस में तीग ज्ञान उत्तपन्न । भया महोब नप को जनागड़ गिरनार जात चौरासी जैनमत जुरे छोहनी चार ।।
५. कक्का बत्तीसो- काकारादि बत्तीस पद्यों में गन्दाबध्द प्रस्तुत रचना संवत् १६१.५ में समाप्त हुई थी। यह पत्र भण्डार टि जस मन्दिर पाटोदियान जयपुर के एक गुटके में ३०-३४ पृष्ठ पर संग्रहीत है ।२
इस प्रकार कवि की अधिवाश रचनाय चारित्र धर्म पर जोर देने वाली है। कवि का विस्तृत अध्ययन आगामी किसी भाग में किया जावेगा ।
३. मनराम
मनराम प्रधना गन्ना माह १७वीं शताब्दी के प्रमुख हिन्दी कवि थे 1 वे कविवर बनारसीदास जी के समकालीन थे । मनराम विलास के एक पद्य में उन्होंने बनारसीदास का स्मरण भी किया है । उनकी रचनामों के आधार से यह कहा जा सकता है कि मनराम एक उच्च अध्यात्म-प्रेमी कवि थे। उन्होंने या तो प्रध्यात्म रसको मगा बहाई या फिर जन साधारण के लिये उपदेशाश्मक, अथवा नीति
१. प्रतिमा कारण पुण्य निमित, बिनु कारए कारण नहि मिस ।
प्रतिमा रूप परिणव प्रायु, दोषादिक नहीं ब्यापै पापु । कोष लोम माया बिनु मान, प्रतिमा कारण परिवं जान ।
पूजा करत होई यह माज, दर्शन पाए गये कपाउ ।। २. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची भाग-४-पाठ ६७९