Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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पद एवं गीत
पंखीगडे माला फस्या मनि धरी पावस प्रेम । 'काली ते मेहण रातड़ी, बालूयडा विण सुने धरि रहीये केम के ॥ ३ ॥ गगन भक्ति गड़गडे बाजसे झंझावात । कुज बिहगंम मंडली गीरि कन्दर रे, गुजे हरि कपि जात के ॥ ४ ॥ गाजे ते अम्बर छाहिउ, झड़ बादल बल भांति । अगियो अंधार ते तग तगें बोले तिमिरा रे भरिमा भिम राति के ।। ५ ।। सुख समे प्रीउडो नामियो मनि धयो प्रतिहि नीडोर । कोई भाभिनीहं भोलथ्यो, करि कांमण रे मार चितड़ानो चोर के ॥ ६ ।।
शीत ऋतु :
सोहमणा दिन शीसना गाये ते गोरी गीत 1 धीतनो भय मनिधरी हवे मानिमि रे मुके मन तणा मान के ।। ७ ।। हिम रित रे बीजी नाबी बीजी हिम रति रे सखि हरष निधान । ना होलियो रे वसे गिरि गुहरांन, वियोगे रे वरणसे देह बान ।। ८ ।। योबन जाये रे पीउने नहीं मान के ।। हिमरतें हिम पड़े हे सखी दास ने धन वन राय । तुझ बिना ए दिन दोहिला ह्यारी दाझेरे पति कोमल कायरे ।। ६॥ वाजे ते शीतल वायरो, बाझे ते वाहिर ठार।। घूजे ते बनना पंखिया, किम रहस्ये ते वनि प्रियसुकुमार के ॥१०॥ बन छोडि दवं भय कमलिनी, जले रहे मनि घरीनातेष । तिहां थकी परिण हीमें दही नहीं, छुटियेरे वति रातिरा लेख के ।। ११ ।। तेल तापन' तुला तरणी ताम्र पट तंदोल ।। तप्ततोयते सातमू सुखिया नेरे हिम रति सुख मल के ॥ १२॥ शीयालो सघलो गयो, पणि नावियो यदुराय ।। तेह बिना मुझने झूरता एह दीहडारे वरसां सो थाय के ॥ १३ ॥ कोयल करे रे टहुकडा लहे केसे मंया डाल । बेलि ते पोपट पाढउ तेह सांभली रे स्ये न पाव्या लाल के ॥ १४ ॥
प्रीम ऋछु :
ग्रीसम रित श्रीजी प्रावी, पीजी ग्रीसम रति किम जास्ये एह ।। घरे नाश्योरे माहोलो धरी नेह, सामलिया रे मनि समरो गेह ।। १५ ।।