Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 246
________________ मट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व त्रय गुपति गुरु चरित्र पाले । क्रोध माया मद लोभ ने टाले || सु० ॥ ३ जेहने शील आभूषण सोहे । दोठडे भवित्रयाना मन मोहे ॥ सु० ॥ ४ ॥ वरण सुधारस पां प्रति मोठा । निरखतां लोचने श्रमिय पईठा || सु० || ५ | वचन कला करो विषव ने रंजे । वादी अनेक तरणा मद भेजे || सु० ॥ ६ ॥ श्री मूलसंघ मंडण मुनिराज । प्रगट्यो संबोधवा काजि ॥ सु० ॥ ७ ॥ अभयचन्द्र दीठे जगत मन मोहे ॥ सु ॥ ८॥ रत्नको रति पद कुमुद वाशि सोहे । तारण तरस गय अबधार नित नित वंदित विबुध श्रीपाल ॥ सु० ॥ ६ ॥ ( ७ ) प्रभाति नमो देव जिगंद | रत्नकीत सूरी सेवो ग्रानंद || चली || सुप्रभाति सबल प्रबल जेणें काय हराव्यो । जाला पोरमांहि यतीये वधाव्यो || सु० ॥ १ ॥ बाग्वादिनी वदने बसे एहने । एहनी उपमा गडपती गिरवो गुरण गम्भीर । शील सनाह ધરે कही से केहनें ॥ सु० ॥ २ ॥ मनधीर || सुरु || ३ | गणेश कहे ते शिव सुख पाये || सु० ॥ ४ ॥ जे नरनारी ए गोर गीत गायें । (5) प्रभाति श्रावो सालही रे सहू मिलि संगे । वादो गुरु कुमूदचन्द्र ने मनि रंगि || भावो० ॥ १ ॥ २२६

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