Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 247
________________ २३० छंद श्रागम अलंकार तो जाण । वारु चिन्तामरिण प्रमुख प्रमाण || श्रावो ॥ २ ॥ तैर प्रकार ए चारित्र सोहे | दोठडे भविथण जन मन मोह || वो० ॥ ३ ॥ साह सदाफल जेहनो तात । सरस्वती गछतरणो सिणगार । पद एवं गीत धन जनम्यो पदमां खाई मात || श्रावो || ४ || काल काफलनी मार || श्रावो० || ५ ॥ बेगस्यु' जोतियो दुर्द्धर विख्यात । महीयले मोढ बंझे हाथ जोडाविया वादी संघात || प्रावो ॥ ६ ॥ जे नरनारी ए गोर गुण गाये । संयमसागर कहे ते सुखी थाये || भादो० ॥ ७ ॥ गीत ( ६ ) श्री श्रादि जिन नमी पाय रे, प्रणमी भारती माय रे । गास्युं गछपति राय रे, गातां सुख बहू थाय रे ! श्रावो साहेली सहली नारि रे, वांदो कुमुदचन्द्र सार रे । रतनकीति पार्टि उदार रे, लघु पणें जीत्यो जिणे मार रे ।। श्रचिली।' गोमंडल नयर विशाल रे, तिहो बसे मोढ वंश गुणमाल रे । सदाफल साह गुणवंद्र रे धरि रामापदमा संत रे || मो० || ते बेह कुखि उपनो वीर रे, बत्तीस लक्षण सहित शरीर रे । बुद्धि बहोत्तरि छे गंभीर रे, वादी नग खंडन वच्च समधीर रे || श्रादी० ॥ श्री मूलसंघे गोवम समान रे, सरस्वति गछ महिमा निधान रे । मोटा महीपति मान रे || भादो ० ॥ त्रयोदश चारित्र छे अभंग रे | दरशन दीठे उपजे रंग रे || भावो० ॥ रश्न कीर्ति बोले वाणी रे, अमृत मीठी श्रमीम समाशिरे । बात देशांतरे जांणी रे, पाटि आप्यो सुख खांणी रे || श्रावो ॥ तनू कनक समान रे, पंच महाव्रत पाले चंग रे, बावीस परीक्षा सहे अंगिरे, ... कहांन जी सहसकरण महिलदास ने वीर भाई गोपाल पूरे आसरे । पाट प्रतिष्ठा महोत्सव की रे, जग मां यश बहु लीघ रे || श्रावो० ॥

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