Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तिस्व एवं कृतित्व
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नाम जपंता न रहे पास. जनम मरण टाले संताप ।
पे मुहिगीरास ॥ २९ ॥ जे नर समरे लोढरण नाम, ते पामे मन यांछित काम |
कुमुदचंद्र कहे भाषा ॥ ३० ॥ ( ५६ } जिनवर विनती प्रभु पाय लागु करू सेव ताहारी ।
तमे साभलो श्री जि नराव माहारी ॥ मन्हे मोह वेरी पराभव करे छ।
घौगति तणा दुकाव नहीं वीसरे छ । १ || हूं तो ला चोरासिय योन माहि ।
भयो जनम ने मरण करे मभाहे ।। पूरा में कऱ्या कम जे धर्म छाडी।
कबहु ते सहु साभलो स्वामी माडी ॥२॥ हूँ तो लोभ लपट यो कपट कीधा।
पण मोलवी परतणा द्रव्य लीपा ।। बस्सी पंड पोस्यो करी जीव हंसा।
करी पारकी कुतली निज प्रसंख्या ॥ ३ ॥ मे तो बालीया पार का मर्म मोसा ।
नहीं भासीया पापणा पाप दोसा ।। सदा संग कीचो परनारी केरो।
नहीं पालीवों धर्म जिन राज तेरो ॥४॥ पद्मोधर तणे पास ..... ... ... ।
नहीं संभस्यो जिन उपदेस सुयो । हूँ तो पुत्र परिवार ने मोह मातो।
नहीं जारणीयो जिनवर कास जातो ॥ ५ ॥ एहरिमनु पाप करी पंड मार्यो।
माहा मुरखे नरभव फोक हार्यो । गयो काल संसार भाले भमंता।
सह्मां ते प्रति दुर्गति दुख अनंता ॥ ६ ॥