Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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२२२
प्रभासी
ते पछी गुरु वचनामृत पोजे ।
जिम भव दुख जलांजलि दीजे ॥जागि०॥ ५ ॥ कीजीये संगति साधुनी रही।
जहथी उपजे नहीं मतिम ही जागि०।। ६ ।। क्रोध माया मय लोभ मूकीजे ।
हसीय सुपामने धानजदीजे जागि०।। ७ ।। बोलिये वचनते मर्व सोहात्।
जेही उपजे नहीं दुख जातु ॥जागि०॥ ८ ॥ मूकीम मोह जंजाल सहू खोटु ।।
जोडस्ये को नहीं मायुष बेटे जागि। ६ ।। जायछे योषन थाप तु डार्यो।
तप जप करीस्ये ने लीजीये लाहो ॥ जागि० ॥ १० ॥ कहे कुमुदचन्द्र जे एह चितवस्य ।
तेहने परि नितु मंगल विलस्ये ।। जागि ॥ ११ ॥
राग प्रभाती आवो रे सहिय सहिलडी संगे ।
विघन हरण पूजीये पास मनरंगे ।। प्रांचली ।। नीलबरण तनु सुन्दर सोहे ।
मुनर किन्नरना मन मोहे ।। पादो० ॥१॥ जे जिन वंदिता बांछित पूरे।
नाम लेता सह पातक बुरे ॥ पावो० ॥ २ ॥ जे सुप्रभाति उठी गुरण' गाये ।
तेहर्ने घरि नव निधि सुम्न थाये ॥ भावो० ।। ३ ।। भय भय वारण त्रिभुवन नायक ।
दीन दयाल ए शिव सुख दायक ।। भावो० ॥ ४ ॥ अतिशयवंत ए जगमाहि गाजे ।
बिधन हर बार विहद विराजे || पायो ।। ५ ।। जेहनी सेव करे धरणेद्र ।
जय जिनराज तु कहे कुमुदचन्द्र ।। प्राबो ॥ ६ ॥
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