Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
View full book text ________________
संकटहर पार्श्वनाथनी विनत
कमट महा मरकरी पंचानन, 'मीक कुमुद वन हिमकर भानन ।
भवं भय कानन दायो ।। ३ ।। नोल वरण अति सुन्दर सोहे. नियंता सुर नर मन मोहे ।
मनु मंगल भावो ।। ४ ।। नगर वराणसी जनम ज कहीये दरशन दीठे सिव सुत्र लहीये ।
महीयले महिमावंत ॥ ५ ॥ बाल पणे जर ... .... सीघो, मोह महाभटनो क्षय कीयो ।
लीषु पद अरिहंत ॥ ६ ॥ समोहसरण जीनवस्नु राजे, वेबिल ज्ञान कसा प्रति छाजे ।
___ भाजे भव संदेह ।। ७ ।। वाणी मधुरी मनोहर गाजे, गण वाजा बाजि ज बाजे।
लाजे पावस मह ।। ८ ।। देस बिदेस बीहार करीने, कर्म पलोन सहु दूर हरीने ।
पाम्या परमानंदो ॥ ६ ॥ तुम नामे सह भावे भाजे, तुम नामे सुख संपत्ति छाजे ।
छुटे भवना फंद ।। १० ॥ रोग सोग चिता सहु नासे, तुम नामे सही मत माजे ।
गारद अंग अपार ॥ ११ ।। तुम नामे मेवल भद जलझर, रोरा चढो केशरी अति दुद्धर ।
तेन करे कन धार ।। १२ ।। तुम नामे शीतल दाबानल, तुम नामे फणपति अति चंचल ।
नेह न करे मन सोस ।। १३ ।।। उद्धति अरियण थलम असाकर .... ., टले दुष्ट जलंधर ।
न हो बंधन सोख ॥ १४ ॥ मात पिता तुम सज्जन स्वामि, तल बांधव ती अंतर जामि ।
तमे जग गुरु मन्ने ध्याउ ॥ १५ ।। संकटहर :श्री पाश जिनेश्वर, हांलोट नयरे यतिसय सोभाकर ।
नित नित श्री जीन गाउ ॥ १६॥ जे नर नारि मनसु भएसे, तेहने घर नव निध संपसे ।
लहसे अविचल ठाम ।। १७ ॥
Loading... Page Navigation 1 ... 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269