Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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भट्टारक रस्मकीदि मानेज गोपाल, बेजलदे, मानबाई यहिन आदि सभी थे ! यह प्रतिष्ठा संवत १६४३ बैशाख बुदी पञ्चमी गुरुवार के शुभ दिन समाप्त हुई थी।
बलसाड नगर में फिर उन्होंने पंच कल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न कराई। यह प्रतिष्ठा हंबड वंशीय मल्लिदास ने कराई थी। उसकी पत्नी का नाम राजवाई था। उसके जब पुत्र जन्म हुग्रा तब मल्लिदास ने दान प्रादि में खुब पंसा लगाया तथा एक पंच कल्याणक प्रतिष्ठा का मायोजन किया । मंगसिर सुदी पंचमी के दिन कुकुम पत्रिका लिखी गई।
चारों ओर गांवों में पंधितों को भेजा गया। पत्रिका में लिखा गया कि जो भी पंच कल्याणक प्रतिष्ठा को देखेगा उसे महान पुण्य को प्राप्ति होगी।' पन्न पाल्याणक प्रतिष्ठा की पूरी विवि सम्पन्न की गयी। प्रकुरारोपण, पस्तु विषाम नोदी मंडल, होम, जलयात्रा मादि विधान कराये गये । मंडल में भट्टारक रलकोति सिंहासन पर घिराजगान रहते थे। विविध वाद्य यंत्र बजाये गये थे। संघपति मल्लिास, संधरेण मोहन दे, राजबाई प्रादि की प्ररा नसा की सीमा नहीं रही । अन्त में कलशाभिशेक सम्पन्न हुए तब प्रतिष्ठा समारोह को समाप्ति की घोषणा की गयी ।
इसके पश्चात म1 मुदी एकदशी के शुभ दिन भट्टारक रत्नकीति ने ब्रह्म
१. एखी परे सज्जन आवयाए, श्रीजिन मंडप म्वार के
उत्सव सोभताए बाग मंउस विष सोभतिए । संधपूज सुखकार के, उत्सव अति घणाए जिन उपार कुम ढालायाए, जय जयकार सुथायके ।।
पच कल्याणक विष हवाए, श्री रत्नकीर्ति गुरुराय के ।। २. अरे संघ मेल्या विविध देशना, सोल छतीस ए। बैशाख बुषि एकवसी सोमवार, प्रतिष्ठा तिलक असोस ए ।
गीत पष्ट संख्या 65 ३, रत्नकोति भट्टारक बचने, फकोलि लखाई जे ।
गाँम गामना संघ सेजवाला में में पाला आवे ।। मंगल रचना प्रति घणो उपमा, अकोरारोपण उदार जे । जल यात्रा सांतिक संध पूजा, अन्न वान अपार जी । संवत सोल छेहतालि, बेशाख बधि पंचमी ने गुरुवार जी । रस्नकोति गोर तिलक करे, धन्य श्री संघ जय जयकार ।।