Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
View full book text
________________
भट्टारक रत्नकोति एवं कुमुद पन्द्र : A
व कृतित्व
१. पेखो सस्त्री नन्द्रसम मुख चन्द्र २. आदि पुरुष भजो प्रादि जिनेन्दा ३. कौन सखी सुध ल्यावे पश्राम की ४. जपो जिन पार्श्वनाथ भवतार ५. पावन भति मात पदमावनि खतां ६. प्रात ग़मये शुभ ध्यान धरीजे ७. वासुपूज्य जिन चरिती-मुणो नाम पूज्य मेरी विनती ८. श्री मारदा स्वामिनी प्रणाम पाय, स्तबू नीर जिनेश्वर विबुधराय । ९. अज्झारा पार्श्वनाथनी वीनती
उक्त पदों एवं विनतियों के अतिरिक्त अभी भ, शुभचन्द्र की और भी रचनाए होंगी, जो 1ो पुरा के हो पर अपना किसी शास्त्र भण्डार में स्वान्त्र के रूप में ग्रहाायथा गपड़ी है अपने हार बी बाट जोह रही होंगी।
पदों में कवि ने उत्तम भावों का रखने का प्रयास किया है ता मालम होता है कि शुभचन्द्र प्रने पूर्ववर्ती करिया का समान "नेपि-राजुल" को जीवनघटनामों से अत्यधिक प्रभावितले गलिः एक पद में उन्होंने "कौन सनी सुध त्याचे श्याम की'' मामिक भाव भरा । इस पद से स्पष्ट है कि कवि के जीवन पर मीरा एवं मुरदान के पशं का प्रभाव भी पड़ा है
कौन सखी भुध ल्याव श्याम की । मधूगै धनी भूख वद विराजिरा, राजमति गुगण गाने ।।श्यामः ।। अग पिपरा गनीमय मेरे, मनोहर माननी पान । करो काछ नन्न मन्त मेरी सजनी, मोहि प्राणनाय मिनाचे श्याम।।२।। गज गपनी गुण मन्दिर स्यामा, मनमथ मान सतावे । कहा अयमुन अब दीन दयाल छोरि मुगति गा भाये । सब सखी मिली मनमोहन के दिग, जाई कथा सुनाये। सुनो प्रभु श्री भचन्द्र के साहिब, कामिनी कुल क्या ल जावें ॥४॥
कवि ने अपने प्रायः सभी पद भक्ति ररा प्रदान लिखे हैं । उनमें विभिन्न तोय करों का स्तमन किया गया है। प्राविमाथ स्तवन का एक पद है देखिये
यादि पुरुष भजो श्रादि जिनेन्दा टेका। सकल सुरासुर शेष सु ध्यंतर, नर खग दिनपत्ति सेवित चंदा ।।१।।